श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सर, जी सर और सर जी।)

?अभी अभी # 352 ⇒ सर, जी सर और सर जी? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें आप देशकाल और भाषा के दायरे में नहीं बांध सकते। आदमी जहां जाता है, वहां अपनी भाषा साथ ले जाता है, लेकिन जब वापस आता है, तो कुछ छोड़कर आता है, और कुछ लेकर जाता है। शायद इसीलिए भाषा और संस्कृति का भी आपस में गहरा संबंध होता है।

अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए, लेकिन वे साथ में हमारी भाषा और संस्कृति का कुछ हिस्सा भी साथ गए। अच्छाई को कौन देश और दायरे के बंधन में बांध पाया है। भाषा भी बड़ी सरल और मासूम होती है, बड़ी आसानी से परिस्थिति के अनुसार ढल जाती है।।

हमारे श्रीमान, महाशय, जनाब कब सर हो गए, हमें पता ही नहीं चला। सरकारी स्कूल के उपस्थित महोदय, समय के साथ प्रेजेंट सर और येस मेम हो गए। अगर आप श्री रविशंकर लिखते हैं, तो मन में सितार बजने लगता है, और अगर श्रीश्री रविशंकर लिखते हैं, तो आपके अंदर सुदर्शन क्रिया शुरू हो जाती है।

आजादी के पहले सर उपाधि भी होती थी। याद कीजिए सर जगदीशचंद्र बसु, सर यदुनाथ सरकार और सर शादी लाल। सरकार शब्द में सर का कितना योगदान है, यह शोध का विषय हो सकता है, क्योंकि हमारे यहां तो राज होता था, राजा महाराजा होते थे, उनके राज्य होते थे।।

आजादी के बाद, बोलचाल में भी सर ऐसा सरपट दौड़ा कि फिर उसने कहीं रुकने का नाम ही नहीं लिया। छोटा अफसर हो, बड़े बाबू हों या चपरासी, सब सर के आसपास ही सर सर कहते फिरते रहते थे। दफ्तर में आते वक्त गुड मॉर्निंग सर, और जाते वक्त, गुड नाईट सर मानो प्रोटोकॉल हो गया हो।

पता ही नहीं चला कि सर कब, जी सर हो गया। हां में हां मिलाना ही तो जी सर, जी सर होता है। वैसे भी नौकरशाही में तो जी सर, तकिया कलाम ही हो चला है। बात बात में जी सर सुनकर बड़ी कोफ्त होने लगती है।।

तीतर के दो आगे तीतर की तरह, सर के भी आगे जी लग जाता है तो कभी पीछे जी। दफ्तर का जी सर, कब घर में आते ही सर जी हो गया, कुछ पता ही नहीं चला। कॉलेज के प्रोफेसर को भी तो हम सर ही कहते हैं। थीसिस अधूरी पड़ी है, सर को फुर्सत नहीं है। कभी परीक्षा तो कभी चुनाव और शिक्षा के सेमिनार अलग। जब भी घर पर फोन करो, यही जवाब मिलता है, सर जी तो अभी आए ही नहीं।

शिक्षा के क्षेत्र में तो वैसे भी सरों का ही बोलबाला है। प्राइमरी के भी सर और यूनिवर्सिटी के भी सर, सब सर बराबर। कोचिंग इंस्टीट्यूट में तो गुप्ता सर, माहेश्वरी सर और बंसल सर। सभी टॉप के सर, और क्या टॉप का रिजल्ट।।

होटल में सर जी आप क्या लेंगे तो ठीक, लेकिन जब ऑटो वाला भी पूछता है, सर जी, कहां जाना है, तो मन में अच्छा ही लगता है। जो अपनापन, प्रेम और सम्मान सर जी में है, वह जी सर में कहां..!!

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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