श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “खिलखिलाती अमराइयाँ…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 52 ☆ खिलखिलाती अमराइयाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
हवा कुछ ऐसी चली है
खिलखिलाने लगीं हैं अमराइयाँ।
माघ की ख़ुशबू
सोंधापन लिए है
चटकती सी धूप
सर्दी भंग पिए है
रात छोटी हो गई है
नापने दिन लगे हैं गहराइयाँ।
नदी की सिकुड़न
ठंडे पाँव लेकर
लग गई हैं घाट
सारी नाव चलकर
रेत पर मेले लगे हैं
बड़ी होने लगीं हैं परछाइयाँ।
खेत पीले मन
सरसों हँस रही है
और अलसी,बीच
गेंहूँ फँस रही है
खेत बासंती हुए हैं
बज रहीं हैं गाँव में शहनाइयाँ।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈