श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “अब की बार?“।)
अभी अभी # 362 ⇒ अब की बार? श्री प्रदीप शर्मा
देखिए, हम राजनीतिक रूप से कितने समझदार और परिपक्व हो गए हैं, जो मैंने नहीं लिखा, वह भी आपने पढ़ लिया होगा।
किसी ने गलत नहीं कहा, समझदार को इशारा काफी होता है, यानी हमने आपको समझदार भी बना दिया। शायद अब की बार हमारी पोस्ट की रीच कुछ बढ़ जाए, क्या करें, हथकंडों का जमाना है।
जो, अब की बार, कभी एक तकिया था, वह आजकल नारा बन गया है, एक ऐसा नारा जिसमें नेता सिर्फ हमारा नेता कैसा हो, ही कहता है, वाक्य पूरा तो जनता ही करती है। वे सिर्फ भारत माता की, कहते हैं, बाकी सब देशवासी संभाल लेते हैं।।
विविध भारती पर सुबह सवेरे, भक्ति संगीत के कार्यक्रम वंदनवार में, अक्सर छाया गांगुली के स्वर में, सूरदास जी का एक भजन प्रसारित होता है ;
नाथ मोहे अबकी बेर उबारो।
तुम नाथन के नाथ स्वामी
दाता नाम तिहारो।।
तीन लोक के तुम प्रतिपालक
मैं हूँ दास तिहारो।
क्षुद्र पतित तुम तारे रमापति
अब ना करो जिया डारो।।
नाथ मोहे…
यही अबकी बेर, आगे चलकर, अबकी बार हो गया है। हर व्यक्ति निन्यानवे के फेर में पड़ा है। आज की पीढ़ी के बच्चों से फिर भी माता पिता 100 % की अपेक्षा रखते हैं। पापा पिछली बार मेरे अस्सी प्रतिशत आए थे, इस बार 88 परसेंट आए हैं। जहां कल 93 % था, वहां अबकी बार 98 की उम्मीद है, बेटा दुनिया कहां जा रही है, बहुत प्रतिस्पर्धा है।
अबकी बार, ये दिल मांगे मोर। यहां कौन सूरदास की तरह इस भवसागर से पार जाना चाहता है। उसे उबरना नहीं, आगे बढ़ना है, बहुत आगे निकलना है, सबसे आगे निकलना है। चारों तरफ मोटिवेशनल स्पीच और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ही छाए हुए हैं। अबकी बार अगर टॉप करा, तो iPhone पक्का।।
जिनके इरादे बुलंद होते हैं, उनकी मुट्ठी छोटी नहीं होती। पिछली बार बड़ी मुश्किल से 2BHK का फ्लैट लिया था, अबकी बार अपना खुद का बंगला होगा। बिटिया का पैकेज भी अबकी बार डबल हो गया है। जीवन में बहुत संघर्ष किया, पसीना बहाया, अबकी बार छुट्टियां विदेश में ही बिताएंगे बच्चों के साथ।
सबके अपने अपने, अबकी बार हैं, जहाँ प्रयत्न और पुरुषार्थ है, वहां बेड़ा पार है। कहां विरक्त भक्त सूरदास और कहां हम विभक्त संसारी जीव, लेकिन अबकी बेर हमें भी इस पोस्ट पर नहीं जाना चार सौ पार। हमारी भी नाथों के नाथ से यही टेर है ;
नाथ मोहे ..
अबकी बेर उबारो..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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