सौ. वृंदा गंभीर
☆ कविता – तेरी मुहब्बत हूं मैं ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆
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तेरा एहसास हूं मैं
तेरी सांस हूं मैं
‘तेरी जिंदगी हूं मैं
क्या हुआ थोडी दूर हूं मैं
फिर भी तेरी हर एक सांस
में हूं मैं
सिर्फ मुझे दिल से याद करना
तेरे पास खडी हो जाऊंगी मैं
इतना तो भरोसा रखो
तेरी हर कदम में साथ हूं मैं
क्या करे तेरी मुहब्बत ने
पागल कर दिया हमें
तेरे प्यार में डूब चुकी हूं मैं
अब मैं मेरी रही नहीं
दिलोजान से ‘तेरी हुई हूं मैं
अब जिंदगी भी ‘तेरी मौत भी ‘तेरी
जो कुछ भी हो तुम्हारी हूं मैं
हर पल तुमको याद करती हूं
हर एक दिन तुम्हारी राह देखती
हूं मैं
अब तुम्हारे सिवा जीना गवारा नहीं
तेरे प्यार में अंधी हुई हूं मैं
तुम सिर्फ याद रखना
कोई तुम्हारा इंतजार करता है
तुम नहीं आये तो जान दे दूंगी मैं
तुम सिर्फ मेरे हो किसी और के नहीं
तुम्हारे लिए पागल हो गई हूं मैं
अब दौड के आ जाना
नहीं तो मर जाऊंगी मैं
– दत्तकन्या
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© सौ. वृंदा गंभीर
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈