श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “योगाग्नि एवं क्रोधाग्नि…“।)
अभी अभी # 364 ⇒ योगाग्नि एवं क्रोधाग्नि… श्री प्रदीप शर्मा
हम यहां वेद और आयुर्वेद की चर्चा नहीं कर रहे, ना ही उस जठरग्नि का जिक्र कर रहे, जिसके कारण हमारे पेट मेंअक्सर चूहे दौड़ा करते हैं, और जब कड़ाके की भूख लगती है, तो जो खाने को मिले, उसे कच्चा चबा जाने का मन करता है।
हमारा शरीर हो, अथवा यह सृष्टि, पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश, इन पांच तत्वों का ही तो सब खेल है। अग्नि को साधारण बोलचाल की भाषा में हम आग बोलते हैं। सोलर सिस्टम तक हम भले ही नहीं जाएं, सोलर एनर्जी तक हम जरूर पहुंच गए हैं। गरीब का चूल्हा और एक मजदूर की बीड़ी आज भी आग से ही जलती है। इतनी दूर बैठा सूरज, देखिए कैसा आग उगल रहा है। आपके पास जो आयेगा, वो जल जायेगा।।
अग्नि का धर्म ही जलाना है, खाक करना है। कलयुग में हम कितने सुखी हैं, कोई कितना भी जले, हमें बददुआ दे, हमारा बाल भी बांका नहीं होता। अगर सतयुग होता तो कोई भी सिद्ध पुरुष क्रोध में हमें शाप देकर भस्म कर देता।
आज भी आयुर्वेदिक चिकित्सा में भस्म का बहुत महत्व है। हमने बचपन में अपनी मां को राख से बर्तन मांजते देखा है, और यज्ञ और हवन की भस्म हमने भी माथे पर लगाई है।
एक अग्नि योग की होती है, जहां यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि अवस्था के पश्चात योगियों के सारे काम, क्रोध, लोभ और मोह के विकार जल कर खाक हो जाते हैं, और उसमें योगाग्नि प्रज्वलित हो जाती है। हजारों वर्षों तक ये योगी तपस्या किया करते थे, तब जाकर भोलेनाथ प्रसन्न होते थे। मांग वत्स वरदान।।
यह सब सुनी सुनाई गप नहीं, हमारा सनातन धर्म है। मत करो भरोसा, हमें क्या। लेकिन हमारी बात अभी खत्म नहीं हुई। परशुराम, महर्षि विश्वामित्र और दुर्वासा के क्रोध के चर्चे तो आपने सुने ही होंगे। शिव जी के तीसरे नेत्र से कौन नहीं डरता। जहां योगाग्नि होगी, वहीं क्रोधाग्नि भी अवश्य मौजूद होगी। अग्नि तो अग्नि है, उसका काम ही भस्म करना है।
मर्यादा पुरुषोत्तम हों अथवा वासुदेव कृष्ण, कहीं अचूक रामबाण तो कहीं सुदर्शन चक्र, अगर एक बार चल गए तो बिना अपना काम किए, कभी वापस नहीं आते। बहुत सोच समझकर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया जाता था।।
हमारे पास आज योगाग्नि तो है नहीं, लेकिन क्रोधाग्नि की कोई कमी नहीं। क्रोध में खुद ही जलते भुनते रहते हैं। शक्ति का प्रयोग उन्हें ही करना चाहिए, जिनमें विवेक बुद्धि हो, तप और स्वाध्याय का बल हो। अग्नि से ही ओज
है, अग्नि से ही संहार है।
दुधारी तलवार है, योगाग्नि क्रोधाग्नि।
क्रोध आया, किसी पर हाथ उठा दिया, गाली गलौच कर ली, अपने ही कपड़े फाड़ लिए, हद से हद, अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली, लो जी, हो गई तसल्ली। क्या करें योगाग्नि तो है नहीं। ईश्वर समझदार है, कभी बंदर के हाथ में तलवार नहीं देता।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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