श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सफलता का मूल मंत्र।)

?अभी अभी # 366 ⇒ सफलता का मूल मंत्र? श्री प्रदीप शर्मा  ?

क्या परिश्रम, पुरुषार्थ और भाग्य के अलावा भी सफलता का कोई मूल मंत्र हो सकता है। कार्य सिद्धि के लिए कई लोग मंत्र का उपयोग करते हैं। कहीं साधना में मंत्र का प्रयोग होता है तो कुछ लोग मंत्र के जरिये सिद्धियां हासिल कर लेते हैं।

आखिर क्या है यह मंत्र, कुछ शब्दों का समूह ही तो है। एक ही शब्द को अगर बार बार बोला जाए, तो वह जप हो जाता है। लोग तो मंत्र जपने के लिए माला का भी प्रयोग करते हैं। कभी सुनिए मुकेश का यह गीत फिल्म शारदा(1957) ;

जप जप जप जप जप जप रे।

जप रे प्रीत की माला।।

कुछ मंत्र गुरु द्वारा कान में फूंके जाते हैं, तो कुछ मंत्रों का लगातार जाप करने से कार्य सिद्धि भी हो सकती है अथवा मंत्र भी सिद्ध हो सकता है। जो स्वयं एक लाख बार मंत्र का जाप नहीं कर सकते, वे पंडितों द्वारा यज्ञ हवन के साथ इनका पाठ करवाते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र की महिमा से कौन परिचित नहीं।।

अपने इष्ट की स्तुति भी मंत्र के द्वारा ही की जा सकती है। कुछ बीज मंत्र होते हैं। बीज मंत्र को वैदिक मंत्रों का सार बोला गया है। ॐ को बीज मंत्र माना गया हैं।

कॉलेज के दिनों में सुबह जल्दी उठकर पढ़ने से याद अच्छी तरह हो जाता था। प्रातः सुबह सड़क पर एक बाबा की आवाज से अक्सर नींद खुल जाया करती थी। आज भी वे शब्द कानों में गूंजते रहते हैं ;

जपा कर जपा कर

हरि ॐ तत्सत् जपा कर।

महामंत्र है यह,

जपा कर जपा कर।।

रटने से कोई चीज याद हो जाती है और जपने से निर्दिष्ट फल की प्राप्ति होती है। मोहन की बांसुरी में क्या कोई मंत्र था, जो ब्रज के गोप गोपिकाएं और गैयाएं मंत्रमुग्ध हो जाती थी ;

मधुबन में राधिका नाचे रे।

गिरधर की मुरलिया बाजे रे।।

कलयुग नाम अधारा। आप जिसका नाम लो, वही सिद्ध हो जाता है। कुछ लोग राम नाम की चादर ओढ़ लेते हैं तो कुछ श्रीकृष्ण: शरणं मम। समय के साथ मूल मंत्र भी बदले हैं और उनके उपयोग भी।

मनुष्य की बुद्धि का क्या है। वह शक्ति का सदुपयोग भी कर सकता है, और दुरुपयोग भी। आखिर आसुरी शक्ति भी तो शक्ति का ही एक रूप है। संसारी लोग अपने निहित स्वार्थ के लिए तंत्र मंत्र का सहारा लेकर सामने वाले का अनिष्ट करते हैं। जहां विद्या है, वहीं अविद्या भी है।।

समय का फेर देखिए। आराध्य की जगह अपने प्रिय नेताओं की भक्ति शुरू हो गई है। नारा ही सफलता का मूल मंत्र हो गया है। बच्चे बच्चे की जबान पर जय श्रीराम के साथ अपने नेता का नाम जुड़ा है। कोई अतिशयोक्ति नहीं, अगर भक्त लोग इस बार, अबकी बार 400 पार का मंत्र जपना शुरू ना कर दें।

सामूहिक जाप का बड़ा महत्व होता है। शब्द ही ब्रह्म है। अगर, अबकी बार 400 पार, आपको भी मंत्रमुग्ध करता है, तो आप भी इसका सामूहिक पाठ कर सकते हैं। अबकी बार 400 पार, का दिन में, चार सौ बार पाठ करें। अग्रिम गारंटी वाला जग जाहिर मंत्र है यह।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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