श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – खुले जब त्रिनेत्र शिवा का…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 215 ☆
☆ एक पूर्णिका – खुले जब त्रिनेत्र शिवा का… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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आंखें जब भी बोलती हैं
राज हृदय के खोलती हैं
*
कम नहीं समझें दर्पण से
सत्य जहन में घोलती हैँ
*
चेहरा बोले झूठ अगर
आँखें मुखड़े तौलती हैँ
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हँसती रोती आँखें स्वयं
सबब इनका टटोलती हैँ
*
सुंदरता के आगे अक्सर
आँखें सबकी डोलती हैँ
*
खुले जब त्रिनेत्र शिवा का
सृष्टि संग भूडोलती है
*
होती जब दो चार आँखें
मौन हृदय का तोड़ती हैँ
*
“संतोष” आँखे मुस्कराकर
खुद को सबसे जोड़ती हैँ
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈