डॉ जसप्रीत कौर फ़लक

कविता – पुल- विश्वास का ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक 

पहले

हमारे बीच बहुत गहरा रिश्ता था

प्रेम की नदी पे  बने

     विश्वास के पुल की तरह

 

उस पुल से हम

     देखा करते थे

कभी इन्द्र धनुष के रंग

     कभी ढलती शाम

 

कभी दूर

आलिंगन करते

    पंछियों को

उड़ते बादलों को

उसी पुल पे खड़े सुना करते थे

    मधुर लहरों का संगीत

 

तुम्हारे बाल उड़ा करते थे

महकी हवाओं में

     कितने प्रश्न हुआ करते थे

तुम्हारे होंठों पर…

 

      तुम उकताई हुई

रोज़मर्रा के जीवन से

       देखती रहतीं

खुला आकाश

 

        मेरा हाथ पकड़े

ढूँढतीं कोई अदृश्य सी राह…

 

  …..आज रिश्ता वही है

मगर…उस पे

अविश्वास की धूप अधिक है

 

          क्या

तुम्हें भी कभी लगा ऐसा..?

          या यूँ ही  मेरे मन में

यह ख़याल आता है

 

कभी सोचो

    क्या तुम

अब भी खड़ी हो

उसी विश्वास के पुल पर

मेरी नयी किताब लिए

        और

लहरों को सुना रही हो

मेरी नयी कविता

         उसी उमंग से

उसी तरंग से

          जो पहले तुम्हारे होंठों पे थी…

 

कहो — कुछ तो कहो…

 

क्या तुम्हें

ऐसा नहीं लगता

     कि वह पुल ढह गया है

 

 जीवन की

       यातनाओं की धुंध में

हम तुम खड़े हैं

नदी के उस पार तुम

इस पार मैं…

संवेदनाओं के

वेदनाओं के

वृक्ष से लग कर

     विवशताओं की टहनियाँ

पकड़ कर…।

☆ 

© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

संपर्क – मकान न.-11 सैक्टर 1-A गुरू ग्यान विहार, डुगरी, लुधियाना, पंजाब – 141003 फोन नं –  9646863733 ई मेल- [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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