श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दारू, शराब, ड्रिंक्स।)

?अभी अभी # 374 ⇒ दारू, शराब, ड्रिंक्स? श्री प्रदीप शर्मा  ?

माया तेरे तीन नाम, परसा, परशु, परसराम की तरह ही बच्चन की मधुशाला में ये तीनों नाम एक ही वस्तु के हैं। अच्छे को बुरा कहना, दुनिया की पुरानी आदत होगी, लेकिन बच्चन की मधुशाला तो मंदिर मस्जिद का मेल कराती है, फिर यह बुरी कैसे हो गई।

हम अच्छे बुरे के चक्कर में इसलिए नहीं पड़ते, क्योंकि सरकार खुद अपनी प्रजा की खुशहाली के लिए देशी विदेशी दोनों सुविधाएं उपलब्ध करवाती हैं। इस देश में अमीर, गरीब, हर इंसान को खुश रहने का अधिकार है। अपनी हैसियत के अनुसार हर व्यक्ति कहीं ना कहीं, खुशी ढूंढ ही लेता है। ।

तो क्यों न श्रीगणेश दरिद्र नारायण से ही किया जाए। सरकार ने इन्हें नया नाम दे दिया है, इन्हें पहचान पत्र भी दे दिया है, अस्सी करोड़ मुफ्त राशन पाने वाले, ये लोग गरीबी रेखा से नीचे का जीवन स्तर गुजार रहे हैं। गरीबी नशा नहीं, अभिशाप है, यह भूलने के लिए इन्हें दारू का सहारा लेना पड़ता है। इनकी मधुशाला को शुद्ध हिंदी में कलाली कहते हैं। अगर उसमें भी मिलावट हुई, तो उसमें इनकी मुक्ति भी संभव है। लेकिन घरों को बर्बाद करने में इस दारू का बड़ा हाथ है। सरकार बड़ी समझदार है, पहले तो इनके पीने की व्यवस्था करती है, और बाद में नशा मुक्ति केंद्र भी खोलती है। तुम्हीं ने दर्द दिया, तुम ही दवा देना।

दारू को आम भाषा में शराब कहते हैं और जो इसे पीता है, उसे शराबी। आज की युवा पीढ़ी के लिए शहरों में जगह जगह बार और रेस्टारेंट खुले हुए हैं, सरकारी विदेशी शराब की दुकान का बोर्ड अलग ही दिख जाता है। यहां शराब का जश्न जन्मदिन से लगाकर रिटायरमेंट की पार्टी तक मनाया जाता है। पीढ़ियों के अंतर को कम करती, संकोच और लिहाज को बेपर्दा करती, जब आज और कल की पीढ़ी, साथ मिलकर चीयर्स करती है, तो राष्ट्रीय एकता का आभास होता है। ।

हमें माफ करें, हम इतने कल्चर्ड नहीं की ड्रिंक्स पार्टियों का गुणगान अपने मुंह से कर पाएं। यहां बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद कहकर बचने से काम नहीं चलता, एक तहजीब होती है, कल्चर होता है, इन पार्टियों का जिसे कॉकटेल पार्टी कहा जाता है।

यहां गरीब सिर्फ वेटर, ड्राइवर और मातहत कर्मचारी ही होते हैं, बाकी सभी मेहमानों में स्त्री पुरुष का भेद भी समाप्त हो जाता है। एक मित्र के परिवार में विवाह के अवसर पर प्रदेश की राजधानी में, एक ऐसा अवसर आया था, जहां सरकारी अफसरों और मंत्रियों की कॉकटेल पार्टी में मेरी संस्कारी पत्नी ने जाने से ना केवल साफ इंकार किया, मुझे भी नहीं जाने दिया। इस कारण इस महाभोज का सीधा वृतांत मैं आप तक नहीं पहुंचा पाया। इसका मुझे आजीवन खेद रहेगा। ।

कहते हैं सुरा असुरों के लिए बनी है, देवताओं के लिए स्वर्ग में इंद्रदेव ने मादक अप्सराओं और पृथ्वीलोक पर सर्वथा अनुपलब्ध अनोखी, अद्भुत मदिरा की व्यवस्था कर रखी है। ऐसे स्वर्ग की आस में ही हम इस धरती पर पूजा पाठ, यज्ञ हवन और दान दक्षिणा कर समुचित पुण्य कमा रहे हैं, ताकि इस लोक में कॉकटेल पार्टी ना सही, स्वर्गलोक में कोई हमें मदिरा और अप्सराओं से वंचित ना करे।

सोचो क्या साथ जाएगा। सब कुछ यहीं धरा रह जाएगा। स्वर्ग में केवल अच्छाई और दान पुण्य ही साथ जाएगा। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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