श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 86 ☆ देश-परदेश – उधो का लेना ना माधो का देना ☆ श्री राकेश कुमार ☆
उपरोक्त चित्र में कुतुर हमारे देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व का प्रतीक हैं। चित्र में कुतुर गांव में हो रहे किसी कार्यक्रम की जानकारी बहुत दूर से ले रहा हैं।
ये ही हाल, हमारे जैसे फुरसतिये जो दिन भर सोशल मीडिया के व्हाट्स ऐप, यू ट्यूब, एक्स, फेस बुक पर तैयार शुदा मैसेज को तेज़ी से आदान प्रदान करते रहते हैं, जिनको राजनीति से कुछ भी लेना देना नहीं है। आज सुबह से घर के टीवी पर चैनल बदल बदल कर परिणामों की बाट जोह रहे हैं।
अधिकतर सेवानिवृत है, कोई भी सरकार बने इन पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता हैं। लेकिन सोशल मीडिया के मंच से इतनी चिंता व्यक्त करते है, मानो इनका कोई सगा वाला चुनाव में प्रत्याशी हो। गडरिया की बैलगाड़ी के नीचे छाया में चलने वाले कुतुर की गलतफहमी की कहानी याद आ गई।
ये लोग अपनी नौकरी के समय में भी काम की चिंता का जिक्र करने में अग्रणी रहा करते थे। कार्यालय में कहां/ क्या चल रहा है, इसकी पूरी जानकारी इन्हें कंठहस्त रहती थी, सिवाय इनकी सीट के कार्य को छोड़कर।
अधिकतर व्हाट्स एपिया साथी क्षेत्र के एमएलए छोड़ कॉरपोरेटर तक को कभी ना मिले होंगे। कभी किसी नेता की सभा या रोड़ शो में भी नहीं गए होंगे, लेकिन राजनीति के सैंकड़ो मैसेज प्रतिदिन कॉपी/ पेस्ट करने में इनका कोई सानी नहीं।
टीवी पर महीनों से हो रही स्तरहीन बहस को इतने गौर से सुन कर अपनी तत्काल टिपण्णी करने में ये लोग अव्वल रहते हैं। कभी भी किसी दल को या सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक/ आर्थिक सहयोग भी नहीं किया होगा, ऐसे लोगों द्वारा, लेकिन जन सहयोग के ज्ञान की गंगा बहाने में सबसे आगे रहते हैं।
नई सरकार के गठन में एक सप्ताह तक लग सकता है, तब तक ये टीवी चैनल चोबीस घंटे चुनाव विश्लेषण कर घिसी पिटी दलीलें परोसते रह जायेंगे।
“जो जीता वो सिकंदर” जैसे गीत सुनाए जायेंगें। पुराना गीत ” आज किसी की हार हुई है, और किसी की जीत रे” भी इन समय खूब मांग में रहता हैं।
चुनाव में पराजित उम्मीदवारों के लिए उर्दू जुबां के जानकार कहने लगेंगे ” गिरते है शहसवार ही मैदाने जंग में….” चुनाव पर टीका टिप्पणियां करने वालों का मुंह बंद करवाने के लिए कहा जाएगा” every thing is fair in love, war and elections.
हम टीवी और समाचार पत्र प्रेमियों का कुछ नहीं हो सकता है। चुनाव परिणाम से अति उत्साहित या निरुत्तर मत हों। ऐसे ही जीवन चलता रहेगा।
© श्री राकेश कुमार
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