श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दिनदहाड़े।)

?अभी अभी # 380 ⇒ दिनदहाड़े? श्री प्रदीप शर्मा  ?

सुनने में यह शब्द अजीब भले ही लगे, लेकिन इसका मतलब सब जानते हैं। अक्सर दोपहर और शाम के स्थानीय समाचार पत्रों में ऐसी खबरें अधिक प्रकाशित होती हैं। ये खबरें सनसनीखेज होती हैं, जिनमें दिनदहाड़े लूट, हत्या, डाका और नकबजनी जैसी आपराधिक घटनाएं शामिल होती हैं।

ईश्वर ने रात सोने के लिए बनाई हैं, फिर भी आसुरी शक्तियां रात को ही उत्पात करती हैं, लेकिन जब ये शक्तियां दिन में भी अपनी काली करतूतों से बाज नहीं आती, तो प्रचंड अग्निपुंज आदित्य नारायण का मन बड़ा क्षुब्ध हो जाता है, दिन अपनी वेदना किससे कहे, उसका दिल ऐसे कुकृत्यों को देख दहाड़ उठता है, और हम लाचार ऐसी दिनदहाड़े घटनाओं को फटी आंखों से देखते रह जाते हैं। शायद इसी को कलयुग कहते हों।।

व्याकरण का ऐसा कोई नियम नहीं है, किस शब्द का कब, कहां और कैसे प्रयोग किया जाए। दिनदहाड़े शब्द में प्रमुख दिन है। जो शब्द प्रचलन में आ गया, वह हमें भा गया। अगर भरी दोपहर में कोई आपसे घर मिलने आए, तो आप यही कहेंगे न, अरे भरी दोपहरी में कैसे कष्ट किया, आइए, थोड़ा सुस्ताइए, ठंडा गरम लीजिए। क्या आप यह कह सकते हैं, दिनदहाड़े कैसे तशरीफ लाए। अगर कह भी दिया, तो इसमें क्या गलत है।

जो काम दिनदहाड़े हो रहे हैं, उनको हम स्वीकार क्यों नहीं करते। क्यों हमने दिनदहाड़े शब्द को गलत अर्थ में ही स्वीकार किया है। और अगर किया भी है, तो आप खुलकर उसका दिनदहाड़े प्रयोग क्यों नहीं करते।।

दुनिया में हर काम आपकी मनमर्जी से नहीं होते। दिनदहाड़े लूट चल रही है, आप क्या कर सकते हैं।

दिनदहाड़े इतनी गर्मी पड़ रही है, आप स्वीकार क्यों नहीं करते। हमारी आज की परिभाषा तो यही है, जो भी काम दिन में चल रहा है, वह दिनदहाड़े चल रहा है, और धड़ल्ले से चल रहा है। सही गलत का फैसला करने वाले आप कौन होते हैं।

आईआईटी और आईआईएम में मोटिवेशन स्पीच, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ साथ ध्यान और पूजा अर्चना के कोर्स भी रखे जाएंगे, क्योंकि एक निरुत्तर योगी आज वहां इसका लाइव डिमॉन्सट्रेशन (सजीव प्रदर्शन) कर रहा है। ध्यान रात में किया जाए, अथवा दिनदहाड़े चमत्कार तो साक्षात् नजर आ ही जाता है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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