श्री प्रतुल श्रीवास्तव
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन
आज प्रस्तुत है व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी की कृति “कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें… “ की समीक्षा।)
☆ “कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें… ” (व्यंग्य संग्रह)– श्री शांतिलाल जैन ☆ पुस्तक चर्चा – श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक : कि आप शुतरमुर्ग बने रहें (व्यंग्य संग्रह)
व्यंग्यकार : श्री शांतिलाल जैन
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
पृष्ठ संख्या : 160 पृष्ठ
मूल्य : 200 रु
“….की आप शुतुरमुर्ग बने रहें” पुस्तक पर चर्चा के पूर्व बात करते हैं इस कृति के कृतिकार श्री शांतिलाल जैन की । शांतिलाल जैन ने अपने जीवन का अमूल्य समय भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत रहते हुए व्यतीत किया और कर्त्तव्य निष्ठा से सहायक महाप्रबंधक के पद तक पहुंचे । सामान्यतः बैंक कर्मचारी गुणा – भाग, जोड़ – घटाने में माहिर अत्यंत्य सूक्ष्म दृष्टि के हो जाते हैं । स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति के पेशे का प्रभाव उसके जीवन, रुचियों, चिंतन और रचनात्मकता पर भी पड़ता है । कलेक्ट्रेट के बाबुओं, अधिकारियों, न्यायाधीशों, पुलिस कर्मियों, सेल्स टैक्स – रेलवे कर्मियों, शिक्षकों, पत्रकारों, बैंक कर्मचारियों का चिंतन और रचना शैली समान नहीं हो सकती । चूंकि शांति लाल जी बैंक में सेवारत रहते हुए व्यंग्यकार बने अतः उनकी दृष्टि में पैनापन, अवलोकन करके उत्तर के रूप में वास्तविकता प्राप्त करने की क्षमता अन्य पेशारत व्यंग्यकारों से अधिक है। संभवतः यही कारण है कि इनके व्यंग्य बिना किसी लंबी भूमिका के शीघ्र ही मुद्दे पर आकर बिना लाग लपेट के गणितीय शैली में परिणाम तक पहुंच जाते हैं । आपके व्यंग्य छोटे किंतु सटीक हैं ।
पुस्तक की भूमिका में शांति लाल जी कहते हैं कि भयानक मंजरों को मत देखिए, जननेताओं की विफलताओं को मत देखिए । सांप्रदायिकता की आंधी आने वाली है, आर्थिक और सामाजिक असमानता की आंधी आने वाली है, पाखंड, अंधविश्वास और जहालियत की आंधी आने वाली है, आवारा पूंजीवाद की आंधी आने वाली है, फाल्स डेमोक्रेसी की आंधी आने वाली है लेकिन सत्ता की पूरी मशीनरी से कहलवाया जा रहा है कि सकारात्मक बने रहिए । “सकारात्मक रहने की ओट में आपसे रेत में सिर घुसाकर रखने की अपीलें की जा रही हैं । वे कहते हैं “…. कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें ।”
पुस्तक के प्रारम्भ में श्री कैलाश मंडलेकर का कथन है कि इस दौर के व्यंग्य लेखन पर प्रायः नान सीरियस और चलताऊ किस्म की टिप्पणी फैशन के तौर पर की जाती है । आज का व्यंग्य लेखन फार्मूला बद्ध और सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने का जरिया बनता जा रहा है और उसमें उस तरह की गंभीरता नहीं है जैसी कि परसाई या शरद जोशी के लेखन में हुआ करती थी । यहां पहले ही कहा जा चुका है कि प्रत्येक की दृष्टि और चिंतन उसके पारिवारक वातारण, परिस्थितियों, साथियों, शिक्षा, व्यवसाय और उसके जिये समय के अनुसार ही विकसित होते हैं, अतः किसी भी कवि – लेखक, कथाकार, व्यंग्यकार की किसी अन्य से तुलना नहीं की जाना चाहिए । जिसे हम पढ़ रहे हैं, जो हमारे सामने है तर्क पूर्वक उसकी बात करना ही उचित है । व्यंग्य वर्तमान के यथार्थ का लेखन है और शांतिलाल जी ने वर्तमान की वास्तविकता को सहजता, सरलता, सजगता व निर्भयता के साथ प्रस्तुत किया है ।
बोधि प्रकाशन द्वारा 2023 में प्रकाशित श्री शांतिलाल जैन की पुस्तक “…. कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें” में 160 पृष्ठों में विविध विषयों पर 57 व्यंग्य रचनाएं हैं । पुस्तक का मूल्य 200 रुपए है । इस पुस्तक में अनेक रचनाएं कोरोना से पीड़ित समाज की विपदाओं पर केंद्रित हैं । इनमें वैयक्तिक और सामाजिक अंतर्विरोधों के साथ व्यवस्था की लापरवाहियों पर पैने कटाक्ष किए गए हैं । निःसंदेह कोरोनाकाल की भयानकता को भुलाया नहीं जा सकता। अनेक अव्यवस्थाओं, विसंगतियों के बाद भी ऐसा नहीं है कि इससे निपटने या बचने के लिए कुछ नहीं किया गया । शासन – प्रशासन, समर्थ और आम आदमी सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, किंतु यदि मात्र दोष खोजने व उनपर कटाक्ष करने को ही व्यंग्य कहा जाता है तो शांतिलाल जी ने बखूबी व्यंग्यकार का धर्म निभाया है । मैं समझता हूं कि यदि अच्छी बातों पर अच्छी टिप्पणी करते हुए, विसंगतियों पर करारे प्रहार किए जाएं तो भी लेखक अपने व्यंग्य की धार को बनाए रख सकता है ।
“नलियाबाखल से मंडी हाउस तक” शीर्षक व्यंग्य में खबर प्रस्तुतिकरण के तरीकों और पत्रकारिता पर करारा व्यंग्य है । “बौने कृतज्ञ हैं, बौने व्यस्त हैं” व्यंग्य में वोट के लिए दिए जा रहे प्रलोभन का वास्तविक चित्र है । “एवर गिवन इन स्वेज आफ इंदौर” में वे सड़क पर पसरे अतिक्रमण और अवरुद्ध यातायात की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं । “हम साथ साथ (लाए गए) हैं” में सामूहिक फोटो खिंचवाने के लिए लोगों के नखरों का हास्य – व्यंग्य भरा सहज चित्रण है । आगे के लेखों में बरसात में शहर में जल प्लावन । दवाखाने में डॉक्टर को दिखाने में लगी भीड़, सास – बहू संबंध, राजनीत में झूठ का महत्व, न्याय व्यवस्था, अदाओं की चोरी, ईमानदार होने की उलझन आदि में विसंगतियों पर सटीक प्रहार है । जैन साहब ने सहजता से सीधे शब्दों में दो टूक बात कही है ।
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