श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “घर से काम (Work from home)।)

?अभी अभी # 384 ⇒ घर से काम (Work from home) ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जिन्हें दुनिया से कोई काम नहीं, उन्हें भी घर से काम होता है। एक हाउसवाइफ की तो पूरी दुनिया ही उसका घर होता है। हां, लेकिन एक योगी, संन्यासी और फकीर को क्या घर से काम।

हमने घर में तो बहुत काम किया है, लेकिन कभी घर से काम नहीं किया। कामकाज के लिए नौकरी धंधा करना पड़ता है, दफ्तर, दुकान, बाजार जाना पड़ता है। एड़ियां रगड़ने, और चप्पलें घिसने के बाद बड़ी मुश्किल से नौकरी मिलती है, एक आम इंसान को।।

हम जिस घर से काम की बात कर रहे हैं, उसे मराठी में घर बसून काम और अंग्रेजी में work from home कहते हैं। दूरस्थ कार्य किसी कार्यालय के बजाय अपने घर या किसी अन्य स्थान से काम करने की यह प्रथा है। भारत में कोरोना काल इसका जनक है। नई पीढ़ी के प्रतिभाशाली आईटी सेक्टर के इंजीनियर्स और अन्य कर्मचारी बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में, पुणे, मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों में, अपने घर से बहुत दूर कार्यरत थे। अच्छा पैकेज, और सभी सुविधाएं।

अचानक कोरोना ने, जो जहां था, उसे वहीं, ठहरने के लिए मजबूर कर दिया। लॉकडाउन की त्रासदी और कोरोना वायरस का हमला दिल दहला देने वाला था। जहां जान के लाले पड़ रहे हों, वहां कैसी नौकरी और कैसा रोजगार। कई परेशान युवा भागकर अपने घर आ गए, जान है तो जहान है, परदेस में ना खाने का ठिकाना और ना जान की गारंटी।।

कई उद्योग धंधे बर्बाद हो गए, कई कंपनियां डूब गई। केवल एक ही विकल्प बचा था, जो जहां है, वहीं से काम करता रहे, दफ्तर अथवा ऑफिस आने की जोखिम ना उठाए। आईटी सेक्टर का पूरा काम वैसे भी कंप्यूटराइज्ड होता है, आपको निर्देश ऑनलाइन मिल जाया करते हैं।

उधर वर्क फ्रॉम होम में कंपनी का भी ऑफिस एस्टाब्लिशमैंट का खर्चा बचा। सर्वसुविधायुक्त ऑफिस होते हैं इन कंपनियों के ऑफिस। अच्छी सुविधा, कसकर काम। खूब खाओ, मन लगाकर काम करो।

आज स्थिति यह है कि हर घर में वर्क फ्रॉम होम चल रहा है। सामान्य हालात के पश्चात् जो कर्मचारी वापस ऑफिस चले भी गए हैं, वे भी अगर छुट्टियों में घर आते हैं, तो उन्हें काम से छुट्टी नहीं मिल सकती। जहां हो, वहीं दफ्तर समझ, ऑफिस टाइम में काम करते रहो। यह कोई

सरकारी दफ्तर नहीं, और जॉब की भी कोई गारंटी नहीं।।

वर्क इज वर्शिप, काम ही पूजा है, का जमाना है। पूजा के लिए जिस तरह मंदिर जाना जरूरी नहीं, घर पर भी की जा सकती है, ठीक उसी तरह काम करने वाला कहीं भी काम कर सकता है, पूजा की तरह, बस उसके काम का सम्मान हो, उसे संतुष्टि के साथ, समुचित पारिश्रमिक भी मिले।

वर्क फ्रॉम होम का दायरा आजकल बहुत बढ़ गया है। आज की पीढ़ी सुशिक्षित और जागरूक है, केवल एक कंप्यूटर के जरिये आप पूरी दुनिया पर नजर रख सकते हैं। संभावनाओं का अंत नहीं,

अवसर अनंत हैं।।

आज हंसी आती है, हमारी पीढ़ी पर। हम अपने समय में कितने निश्चिंत और अनजान थे। उधर गर्मी की छुट्टियां आई, और बस एक ही काम ;

बैठे बैठे क्या करें

करते हैं कुछ काम।

अंताक्षरी शुरू करते हैं

लेकर प्रभु का नाम।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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