सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ भूत भभूत ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सियासत में “भूत” को “वर्तमान “नहीं बनाया जाता। भूत तो भूत है “अभूतपूर्व” नहीं होता। बहुत कम भूतों को वर्तमान बनने का सौभाग्य मिलता है। मिल भी गया तो उन्हें तोता बना दिया जाता है। कुछ को भेड़ में रूपान्तरित कर दिया जाता है।

 पांव छूकर नेतागण, विदेह भूत को “आदर की भभूत “मल देते हैं। भूत इसी में खुश कि चलो कुर्सी पर तो बैठेंगे भले ही किसी को दिखाई न दें। सदेह कुछ और मिलने से रहा। कुछ नहीं तो हैप्पीवाले बर्थ डे मतलब जन्म जयंती या पुण्यतिथि पर खुशबूदार फूलों का गुच्छा और एक दीया तो मिल ही जायेगा।

 वैसे भी भूत को “खंडहर “में रहना चाहिए। जिसके दरवाजे चरर मरर करते हों, खिड़कियों के पल्ले बंद होते खुलते हों, अंधेरे उजाले का तिलिस्म फैला हो, और जहां चमगादड़ों की फड़फड़, मकड़ियों के जाले और छिपकलियों की चिकचिक सुनाई देती हो। भूत, “काल” हो या “व्यक्ति” उन्हें एक जैसा “संवैधानिक उपहार” मिलता है।

 बात सियासत की हो तो “बिचौलिए “यहां हरे हरे नोटों की सूटकेस लेकर “गिरगिटिया जीवों” को पलक झपकते गाँठ लेते हैं। चीता भी फीका है उनके आगे।

आयरलैंड की “अमांडा” को भी बिचौलिए ने ही भूत से मिलवाया था। यहां तक कि शादी के वक्त” अँगूठी “भी भूत की तरफ से पहनाई। 5 बच्चों की माँ अमांडा और 300 साल की उम्र वाला “समुद्री लुटेरा जैक। ” ये अलग बात है कि अमांडा की ढेरों भूतों से दोस्ती थी पर कसम है है जो कभी उसने उनकी तरफ उस नजर से देखा हो। सारा खेल नज़र का है। क्या पता भूतों ने शादी का प्रस्ताव दिया हो और अमांडा ने बेदर्दी से ठुकरा दिया हो।

अमांडा ने प्राइवेट बोट पर शादी की। दिल लिया और दिया भी।

 आजकल “आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस “का जलवा है। हाल ही में लिसा नाम की चीनी व्लाॅगर, डैन नाम के चैटबाॅट से दीवानों की तरह प्यार कर बैठी। उसने लिसा का निक नेम” लिटिल किटन” रख दिया।

 लोग” रोबो “से शादी कर सकते हैं तो “भूत “ने क्या बिगाड़ा !यूं भी कुछ पति नामक जीवों के पुरुष मुक्ति आन्दोलन चलते रहते हैं। वे कहते हैं कि उनकी पत्नियां” वर्तमान” में भी “भूत” की तरह बर्ताव करती हैं। वे कुछ इस तरह से टॉर्चर करती हैं जैसे अशरीरी भूत। मजाल है जो किसी को प्रमाण मिल जाये। जेब से इतने रुपयों का गबन करती हैं कि त्रिकाल में कोई माई का लाल सबूत न जुटा सके।

 उन्हें “सियासी भूतों “को देखकर तसल्ली कर लेनी चाहिए। उनका भी अंदाज़ कातिलाना होता है। दिखाई देकर भी दिखाई नहीं देते। इसे कहते हैं भूतिया कलाकारी, साजिश, षडयंत्र। भूत एक ही तरह के नहीं न होते। नज़र न आने वाले सुरक्षित होते हैं पर चलते फिरते भूत ज्यादा खतरनाक होते हैं।

एक लतीफा वायरल हुआ था। बला का खूबसूरत।

“अच्छी पत्नी और भूत में क्या समानता है?”

“दोनों दिखाई नहीं देते”

“कल्पना कला “भी कोई चीज़ होती है कि नहीं !इसी के बूते बोतलबंद भूत का धंधा भी कर लिया किसी ने। काहे का स्टार्ट अप। न लोन की झंझट न सदेह भूतों का एहसान।

 एक उद्योग ऐसा भी—किसी को अगर शक हो कि वह जिस घर में रहने जा रहा है कहीं वहां भूत तो नहीं—भूत ढूंढने का व्यवसाय करनेवाले इसमें दक्ष होते हैं।

सबसे मुश्किल है यह दौर जहां अमूमन ये पता करना टेढ़ी खीर है कि जिन्दा दोपाया, भूत तो नहीं या जिसे हमने भूत समझा वह चलता फिरता धड़कते दिल का मालिक हो।

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©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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