श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “✓ लोफर √ • Loafer •।)

?अभी अभी # 390 ⇒ ✓ लोफर √ • Loafer • ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

दिन बुरे होते हैं, आदमी बुरा नहीं होता, फिर भी बुरे आदमी के लिए हमारा शब्दकोश तैयार रहता है।

आवारा, श्री 420, बेईमान, मि.नटवरलाल, अमानुष, चरित्रहीन, बंडलबाज, बनारसी ठग, नमकहराम, लुच्चा, लफंगा और लोफर। हम तो लोफर को भी हिंदी शब्द ही समझते थे, लेकिन यह तो अंग्रेजी शब्द निकला।

अन्य हिंदी शब्दों में यह इतना घुल मिल गया कि हम भी इसे बदमाश ही समझने लगे। जब अंग्रेजी डिक्शनरी उठाई तो इसका अर्थ आलसी निकला।

बद अच्छा, बदनाम बुरा। हमें अचानक फिल्म लोफर का यह गीत आ गया ;

आज मौसम बड़ा बेईमान है

बड़ा बेईमान है,

आज मौसम

आने वाला कोई तूफ़ान है

कोई तूफ़ान है,

आज मौसम ..

एक आलसी, लोफर के जीवन में क्या तूफान आएगा। लेकिन जब घूरे के दिन बदल सकते हैं, तो अवगुण भी गुण में क्यों नहीं ढल सकता। जब से हमें लोफर शब्द का अर्थ मालूम हुआ, हमें इस शब्द से प्रेम होने लग गया। आलसी के बजाय अगर कोई हमें प्रेम से लोफर कहे, तो हम कतई बुरा नहीं मानेंगे।।

क्या शब्द के भी दिन बदलते हैं ? एक हिंदी शब्द का प्रयोग हमने बंद कर दिया था, क्योंकि उससे किसी जाति विशेष का अपमान होता था। गांधीजी अस्पृश्य लोगों के लिए हरिजन शब्द लाए, तो क्या इससे क्या वे हरि के जन हो गए ! हरि के जन तो हम भी हैं। हम जिसे मोची कहते थे, वे रातों रात रैदास हो गए, और जिस डाल पर बैठे, उसी को काटने वाले कालिदास हो गए। सूरदास जब माइंड करने लग गए तब उन्हें दृष्टिहीन नहीं, दिव्यांग कहा जाने लगा।

हमने रैदास को पुनः मोची बनाया और उसे अत्याधुनिक, वातानुकूलित फीनिक्स मॉल में बाटा की बराबरी में बैठाया। आज लोग बाटा को भूल बैठे हैं, और मोची शूज को गले लगा रहे हैं।।

बेचारा बाटा मरता क्या न करता, ब्रांडेड शूज के बाजार में टिकना इतना आसान नहीं होता। महिलाओं और पुरुषों में बराबरी का सौदा है, ब्रांडेड शूज। विदेशी जूतों की एक दर्जन कंपनी से अगर लोहा लेना है तो कुछ तो नया करना ही पड़ेगा। बाटा कंपनी ने भी आलस छोड़ा और लोफर शूज की जबरदस्त रेंज बाजार में उतार दी। अब लोफर का अपना स्टेटस है, उपभोक्ताओं में लोफर शूज की अपनी अलग पहचान है।

फैशन वही, जो संस्कार और संस्कृति को आपस में जोड़े। एक समय था, जब पुरुष जूते के जोड़े पहनता था और स्त्री चप्पल अथवा सैंडिल। अब धोती कुर्ता, पैंट पायजामा, कुर्ता कुर्ती सबके साथ लोफर शूज पहने जा सकते हैं। आप भी आलस छोड़ो, लोफर शूज पहनो। यकीन मानिए, लोग आपका चेहरा नहीं, आपके शूज से नजर नहीं हटाएंगे। सस्ता रोए बार बार, लोफर रोए एक बार।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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