श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है पूर्णिका – किससे कहें हम ये दास्तां हमारी …। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 218 ☆
☆ पूर्णिका – किससे कहें हम ये दास्तां हमारी… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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जमाने के हम भी सताये हुए हैं
मुहब्बत में हम चोट खाये हुए हैं
*
मिला दर्द हम को अपनों से ज्यादा
कैसे बताएँ गम छिपाये हुए हैँ
*
हैँ मालूम हम को, रिवायत जगत की
फिर भी ये दिल हम लगाए हुए हैं
*
किससे कहें हम ये दास्तां हमारी
कि कितने सितम हम उठाये हुए हैँ
*
फरेबी, दगावाज़ होती है दुनिया
अपने भी अब स्वयं पराये हुए हैँ
*
वो नजरें मिला कर नजर फेरते हैँ
फिर भी निगाहें हम बिछाए हुए हैँ
*
अब किसी की जरूरत नहीं है हमें
“संतोष” दिल में हम बसाए हुए हैं
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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