सुश्री सुनीता गद्रे
☆ कथा कहानी ☆ महाकवि गुणाढ्य और उसकी बड्डकहा(बृहत्कथा) – भाग ३ ☆ सुश्री सुनीता गद्रे ☆
(सातवाहन नरेश गुणाढ्य और उसके महान* साहित्य को सम्मान के साथ राजधानी वापस ले आया।) अब आगे……
इस कहानी के बारे में संदर्भ…. एक लोक कथा!
मूल बृहत्कथा के बारे में यह एक किंवदंती है कि भगवान शिवजी एक बार माता पार्वती को बृहत्कथा सुना रहे थे। दुनिया की सारी की सारी कथा- कहानीयाॅं, काव्य, नाटक, दंत कथा सबका उसमें समावेश था।वह सारी बृहत्कथा शिव जी के एक ‘गण’ ने योग सामर्थ्य से गुप्त होकर सुन ली थी।इसी बात का पता चलने पर माता पार्वती ने उस गण को ,साथ में इस बात के लिए माफी माॅंगने वाले उसके एक दोस्त को और एक यक्ष जो इसमें शामिल था, तीनों को शाप दिया था। परिणाम स्वरुप उन तीनों को मानव योनि में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा था और अभिशाप यह था कि वे यह कथा जन सामान्य तक पहुॅंचाते है ,तो उन्हें फिर से दिव्य लोक की प्राप्ति होगी।उस गण के दोस्त का मानव जन्म में नाम था गुणाढ्य!
वरदान, शाप, अभिशाप, पूर्व जन्म का ज्ञान, पुनर्जन्म आदि बातों पर हम लोग यकीन ना भी करें तो भी …. इस किंवदंती के अनुसार वररुची नामक व्यक्ति ने ( गण) काणभूती को (यक्ष) और उसने आगे चलकर यह बृहत्कथा गुणाढ्य को सुनाई थी। जिसने आगे जाकर उसका सामान्य लोगों में प्रचार, प्रसार करने के लिए उसको पैशाची भाषा में लिखा था। इस बात पर तो हम भरोसा कर सकते हैं।
…. क्योंकि यह पुराण की कथा नहीं है। उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। ऐतिहासिक साक्ष्यों से सातवाहन शासकों का काल ईसा पूर्व 200 से 300 तक माना जाता है। उनमें से एक शासक ने गुणाढ्य को अपना मंत्री बनाया था।
गुणाढ्य की बड्डकहा मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। लेकिन सन 931 में कवि क्षेमेंद्र ने 7500 श्लोकों का ‘बृहत्कथा मंजिरी’ नामक एक श्लोक संग्रह लिखा। तत्पश्चात कवि सोमदेव भट्ट ने 1063 से 1082 इस कालखंड में 2400 श्लोकों का ‘कथासरित्सागर’ यह ग्रंथ लिखा। दोनों ने अपने ग्रंथ गुणाढ्य के एक लाख श्लोक से जो उनको उपलब्ध हो गए थे, संस्कृत में अनुवादित किए।उनको ही’गुणाढ्य की बृहत्कथा’ कहते हैं ।बृहत्कथा भारतीय परंपरा का महाकोष है। सब प्राचीन दंतकथा व साहित्य का उद्गम स्थान है ।बाण,
त्रिविक्रम, धनपाल आदि श्रेष्ठ साहित्यकारों ने बृहत्- कथा को एक अनमोल, उपयुक्त ग्रंथ संग्रह के रूप में माना है ।जो अद्भुत है, और आम लोगों का मनोरंजन करता है ।वह सागर के समान विशाल है, यह उनका बयान है। इसी सागर की एक बुॅंद मात्र से बहुत से कथाकारोंने कवियों ने अपनी साहित्य रचना की है ।
वेद, उपनिषदों, पुराणों में प्राप्त होने वाली कथा कहानियाॅं वगैरह सब उच्च वर्ग, उच्च वर्ण के साहित्यिक धाराओं के माध्यम से भारतीय इतिहास के सांस्कृतिक अतीत से जुड़ी थी ।उसकी समानांतर दूसरी सर्व सामान्य लोगों में प्रचलित लोक साहित्य की धारा भी आदिकाल से अस्तित्व में थी।सबसे पहले गुणाढ्य ने इस दूसरे साहित्य धारा को बहुत बड़े पैमाने पर लोगों की उनकी अपनी भाषा में संग्रहित किया ।बृहत्कथा सामान्य लोगों के जिंदगी से वास्ता रखती है।जुआरी,चोर, धूर्त, लालची,ठग,व्यभिचारी,
भिक्षु ,अध:पतित महिला, ऐसे कई पात्र कहानियों में है ।उसमें मिथक और इतिहास, यथार्थ और काल्पनिक लोक, सत्य और भ्रम का अनोखा मिश्रण है।
कादंबरी, दशकुमार चरित्र, पंचतंत्र, विक्रम वेताल की पच्चीस कथाऍं, सिंहासन बत्तीसी, शुकसारिका ऐसे कथा चक्र; स्वप्नवासवदत्ता, प्रतिज्ञा यौगंधरायण इस तरह के नाटक, कथा, काव्य, किंवदंतियाॅं और उपाख्यान सम्मिलित है।
इस वजह से उनके रचनाकार, जैसे की बाणभट्ट,भास, धनपाल, सौंडल, दंडी, विशाखादत्त, हर्ष …और बहुत सारे रचनाकार बृहत्कथा के याने गुणाढ्य के ऋणी है ।जितना पौराणिक कथा संग्रहों को उतना ही लोक कथा संग्रहों को भी असाधारण महत्व प्राप्त है। इसी वजह से गोवर्धन आचार्य जी ने वाल्मीकि और वेदव्यास के बाद महाकवि गुणाढ्य को तीसरा महान रचनाकार माना है। वे उसको व्यास का अवतार भी मानते थे। यही बात गुणाढ्य का असामान्यत्व सिद्ध करती है।
— समाप्त —
© सुश्री सुनीता गद्रे
माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈