श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “घरौंदा ”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 182 ☆
☆ # “घरौंदा” # ☆
जीवन भर की
मेहनत से
लगन से
बचत से
हम एक घरौंदा बनाते हैं
अपनी आशाएं
इच्छाएं
संभावनाएं
लगाकर
उसे सजाते हैं
हमारी सिर्फ
यही कोशिश होती है
कि पूरा परिवार
साथ रह सके
खुशी हो या गम
कांटे हो या फूल
दुःख हो या सुख
साथ-साथ सह सकें
जब घरौंदा बनता है
प्यार और स्नेह
आपस में छनता है
हर पल खिलखिलाहट
घर में जगमगाहट
रिश्तों की नई पहचान होती है
घर की आन और शान होती है
हम आत्मविभोर हो जाते हैं
सुन्दर सपनों में खो जाते हैं
मीठी मीठी नींद गुदगुदाती है
ठंडी ठंडी हवा
आगोश में सुलाती है
तभी आसमान से
एक परी उतरती है
घर में सज धज कर आती है
सारा घर उसके स्वागत में
पलकें बिछाता है
छोटा हो या बड़ा
हर कोई गले लगाता है
वो सबके आंखों
का नूर होती है
अपनी प्रशंसा से
मगरूर होती है
धीरे धीरे वो अपना
रंग दिखाती है
दूसरे देश से आई है
यह अपने व्यवहार से दर्शाती है
घर की खुशियां
बिखर जाती है
अपने तानों से
सबका दिल दुखाती है
अपने प्राणाधार के साथ
दूसरी दुनिया में
चली जाती है
घरौंदा टूटता है
राख बच जाती है
पति-पत्नी जीवन भर
एक खुशगवार फूलों सा
घरौंदा बनाने का
सपना देखते हैं
ऐसी परियां
उनके सपने तोड़ कर
कौड़ी के दाम
बेचते हैं
जीवन के आखिरी पड़ाव पर
क्या यही उनके जीवन भर के
त्याग, परिश्रम का मोल है ?
टूटते घरौंदे, बिखरते परिवार
बिलखते मां-बाप
असहाय, निर्बल
क्यों
घर और बाहर
दोनों जगह बेमोल हैं ? /
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© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈