श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “चार दोहे…” ।)
☆ तन्मय साहित्य #235 ☆
☆ चार दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
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कहाँ संतुलित अब रहा, खान-पान व्यवहार।
बिगड़े जंगल वायु जल,दुषित शोर की मार।।
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पर्यावरण बिगड़ गया, बिगड़ गए हैं लोग।
वे ही बिगड़े कह रहे, बढ़े न बिगड़े रोग।।
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कूड़ा-कचरा डालकर, पड़ोसियों के द्वार।
इस प्रकार से चल रहा, पर्यावरणीय प्यार।।
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दिया नहीं जल मूल में, पत्तों पर छिड़काव।
नहीं फूल फल अब रहे, मिले मौसमी घाव।।
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© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈