श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं “मनोज के दोहे ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 135 – मनोज के दोहे ☆
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प्रिये हुआ मन अनमना, चली गई तुम छोड़।
सूना-सूना घर लगे, अजब लगे यह मोड़।।
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अकथ परिश्रम कर रहे, मोदी जी श्री मान।
पार चार सौ चाहते, माँगा था वरदान।।
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गिरे हमारे आचरण, का हो अब प्रतिरोध।
तभी प्रगति के पथ चढ़ें, यही रहा है शोध।।
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न दिखतीं अमराईयाँ, कटे वृक्ष की मेढ़।
कहाँ गईं हरियालियाँ, चाट गईं हैं भेड़।।
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अधिक नहीं अनुपात में, हो भोजन का लक्ष्य।
अनुशासित जीवन जिएँ, यही बड़ा है कथ्य।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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