श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पूजा, आरती और प्रार्थना…“।)
अभी अभी # 410 ⇒ पूजा, आरती और प्रार्थना… श्री प्रदीप शर्मा
कुछ भारतीय नारियां, आस्था एवं, संस्कार वश, अपने पति को ही परमेश्वर मानती हुई, तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा की तर्ज पर, पति को ही पति देव मान बैठती हैं। पतिदेव भी जानते हैं, वे किसी पूजा के पति तो हो सकते हैं, परमेश्वर नहीं। अतः मंदिर अथवा घर में, श्रद्धानुसार तथा सुविधानुसार स्वयं भी पूजा – पाठ किया करते हैं।
जहां मंदिर होता है, भगवान होता है और भक्त होता है, वहां पूजा में दीप भी प्रज्वलित होता है, धूप बत्ती भी होती है, और आरती भी होती है। जितने भगवान, उतनी आरती ! ईश्वर एक है, वह सभी ऐश्वर्यों का मालिक है, दाता है।
वह जगत का ईश, जगदीश है, परम पिता परमेश्वर है। उसका गुणगान ही आरती है। ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, पल में दूर करे। कष्ट मिटे तन का, स्वामी कष्ट मिटे तन का।
जगदीश जी की आरती के वक्त, हर श्रद्धालु दीन, हीन, याचक बन जाता है। भावावेश में वह खुद को, “मैं मूरख, खल कामी” तक कह बैठता है। वह जानता है, आरती में सब चलता है। समर्पण और शरणागति का यह भाव घंटियों और तालियों से और पुष्ट होता रहता है। वह कभी आंखें बंद करता है, कभी खोलता है, उसे आरती में आनंद आने लगता है। सभी आरतियों का कॉपीराइट स्वामी शिवानंद जी के पास होता है। स्वामी शिवानंद जी की कोई सी भी आरती आप गाएं, सुख संपत्ति घर आए। ।
तन, मन, धन सब अर्पण करने के बाद जब आरती के पश्चात् वह प्रसाद ग्रहण करता है, उसे लगता है, उसने जग जीत लिया। एकाएक वह एक साधारण, समझदार इंसान बन जाता है। गाड़ी स्टार्ट कर अपने काम धंधे में लग जाता है। अब उसे कर्म करना है। मन लगाकर धन कमाना है। कल फिर मुलाकात होती है आरती में।
पूजा आरती हो अथवा संध्या आरती, हार फूल, दिया बाती और प्रसाद का भोग तो आराध्य को लगता ही है। ईश्वर की, सर्व शक्तिमान की आराधना का एक और तरीका है, जिसे प्रार्थना कहते हैं। भक्ति हो अथवा प्रार्थना, वह सकाम भी हो सकती है और निष्काम भी। प्रार्थना में केवल मन ही पर्याप्त है। ।
मन में बसी किसी भी मूरत से आप प्रार्थना के जरिए आत्म – निवेदन कर सकते हैं। अपने कल्याण अथवा किसी के कष्ट दूर करने के लिए दुआ कर सकते हैं। सामूहिक प्रार्थना में बड़ा बल होता है। काश हम प्रार्थना में खुद के लिए नहीं, सब के लिए कुछ मांगें। जहां हैं, वहीं से आंख बंद करके जो दीन – दुःखी, अशक्त बीमार अथवा लाचार हैं, उनकी खुशहाली की प्रार्थना अगर निःस्वार्थ रूप से की जाए, तो शायद पत्थर रूपी भगवान भी पिघल जाए। प्रार्थना में बल है, बिना प्रार्थना के हर इंसान निर्बल है।
पूजा पाठ, आरती करें ना करें, प्रार्थना अवश्य करें, खुद के लिए ही नहीं, किसी और के लिए भी। ज्ञात, अज्ञात सब पर प्रार्थना का असर होता है। प्रार्थना की कोई इबारत नहीं, कोई शब्द नहीं। सच्चे मन से जो पुकार निकलती है, बस वही प्रार्थना है, इबादत है, पूजा है, आरती है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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