श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पांव की धूल…“।)
अभी अभी # 411 ⇒ पांव की धूल… श्री प्रदीप शर्मा
माटी कहे कुम्हार से,
तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा,
मैं रोंदूगी तोहे।।
पांव की धूल, हमारे शरीर की सबसे उपेक्षित वस्तु है। इसीलिए घरों में बाहर के जूते चप्पलों का प्रवेश वर्जित रहता है। रोज सुबह घर को बुहारा संवारा जाता है, धूल मिट्टी को घर से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है। दुश्मन को धूल चटाने में भी हमें उतना ही मज़ा आता है, जितना बचपन में मिट्टी खाने में आता था। जो जमीन के अंदर है, वह मिट्टी और जो जमीन के बाहर है, वह सब धूल।
हम मिट्टी से ही पैदा हुए, और हमें मिट्टी में ही समा जाना है। जब हम अपने देश की धरती का गुणगान करते हैं, तो देश की मिट्टी को सर पर लगाते हैं ;
इस मिट्टी को तिलक करो
ये मिट्टी है बलिदान की ;
जिसे हम साधारण धूल समझते हैं, उसे ही रज भी कहते हैं, महात्माओं की चरण रज को केवल शिष्य ही अपने मस्तक पर नहीं लगाते, ब्रज रज में तो भक्त लोटते हुए, गिरिराज की पूरी परिक्रमा करते हैं।।
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू,
तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अँगना, पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी।।
आजकल की माताएं भले ही बच्चों को धूल मिट्टी से बचाएं, पहले उनके हाथ पांव धुलवाएं और उसके पश्चात् ही उन्हें गले लगाएं, लेकिन यशोदा जी ने ऐसा कभी नहीं किया। जिसका मन मैला नहीं, उस के तन पर कैसा मैल।
मिट्टी भी कभी मैली हुई है। मिट्टी तो आज सोने के भाव बिक रही है और लोग पैसा कमाने अपनी जमीन जायदाद बेच बेचकर विदेशों में जा रहे हैं। उनका नमक खा रहे हैं।
और इधर कुछ पाखंडी कथित अवतारी पुरुष इस देश की मिट्टी को कलंकित करते हुए, भक्तों से अपने पांव पुजवा रहे हैं, अपने पांव की मिट्टी से उनकी जान का सौदा कर रहे हैं।।
श्रद्धा, अंध श्रद्धा और विश्वास, अंध विश्वास में एक महीन अंतर होता है। जहां आपकी आस्था के साथ खिलवाड़ शुरू हुआ, अंध विश्वास अपना नंगा नाच शुरू कर देता है। नीम हकीमों के खतरों से तो अब सरकार भी जाग उठी है, लेकिन हिंदू समाज में फैले अंध विश्वास और बाबाओं की कथित सिद्धियों और चमत्कारों के प्रति वह ना केवल आंख मूंदे पड़ी है, अपितु वोट बैंक की खातिर उन्हें समुचित सुरक्षा और राजाश्रय भी प्रदान कर रही है।
हर बड़े बाबा, महात्मा और कथित जगतगुरु के यहां नेता, अभिनेता और उद्योगपति को आसानी से देखा जा सकता है। इनके कथा, प्रवचन और सत्संगों का श्रीगणेश यजमानों से ही शुरू होता है। मान ना मान, मैं तेरा यजमान।।
साधु संतों का सम्मान हमारी सनातनी परम्परा रही है। जो भी संत हिंदू समाज और सनातन धर्म की बात करेगा, हमारी आस्था स्वाभाविक रूप से उधर ही दौड़ पड़ेगी। पहले मुफ्त भंडारे और सत्संग और बाद में पहले ब्रेन वाश और तत्पश्चात् सत्यानाश। और शायद यही हुआ होगा हाथरस में।
अपने आपको श्री हरि विष्णु का अवतार कहने वाले इस पाखंडी सूरज पाल की मिट्टी से तिलक करने के चक्कर में हाथरस के कितने अभागे इंसानों को अपने प्राणों का बलिदान देना पड़ा। देश की मिट्टी और आस्था को कलंकित करने वाला यह शैतान क्या अदृश्य होकर पूरे देश को बेवकूफ बनाएगा।।
एक मछली सारे तालाब को सदियों से गंदा करती चली आ रही है और बदनाम बेचारी अन्य दूध सी धुली मछलियां हो रही हैं। यह एक गंदी मछली ही शाश्वत और सनातन है। अगर इसका इलाज हो जाए, तो शायद आस्था का तालाब पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल हो जाए। और अगर फिर भी पूरा तालाब ही गंदा रहा, तब तो सभी मछलियों की खैर नहीं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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