श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पौधारोपण (Plantation)…“।)
अभी अभी # 414 ⇒ पौधारोपण (Plantation)… श्री प्रदीप शर्मा
आइए, पॉपुलेशन की चिंता छोड़ प्लान्टेशन करें। बच्चों की ही तरह पेड़ पौधे भी हमें उतने ही प्रिय हैं।
एक बीज ही वृक्ष बनता है, जंगल कोई नहीं बनाता, जंगलों में पौधारोपण और वृक्षारोपण जैसे आयोजन नहीं होते, क्योंकि वहां इंसान का दखल नहीं होता। जंगल का अपना कानून होता है, वहां हर चीज रिसाइकल होती है। बंदर और हर पशु पक्षी का भोजन जंगल में उपलब्ध है, शाकाहार और मांसाहार। जीवः जीवस्य भोजनं।
मनुष्य सभ्य होता चला गया। मानव सभ्यता ने जंगल में मंगल किया, गांव, कस्बे और बड़े बड़े शहर बसाए। एक जंगली इंसान को पढ़ना लिखना सिखाया, और चांद तक उड़ने के काबिल बनाया। साहिर बहुत जल्दी कर जाते हैं बोलने में ;
कुदरत ने हमें बख्शी थी
एक ही धरती।
हमने कहीं भारत कहीं
ईरान बनाया।।
इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए इंसान ने क्या नहीं किया, जंगल काटे, पहाड़ काटे, नदियों पर बांध बनाए, बिजली पैदा की। जंगल की लकड़ी से घर के दरवाजे, खिड़की, पलंग और सोफे बनवाए, अन्न, कपास के खेत और फल, फूल, सब्जियों के बाग बगीचे लगाए। सड़क, पूल, गाड़ी, घोड़े और हवाई जहाज बनाए। महल, अटारी कहां आज के हैं। सदियों से हम प्रकृति का दोहन करते चले आ रहे हैं, लेकिन प्रकृति ने सभी उफ नहीं की, क्योंकि वह धरती मां है, धरा है, वसुन्धरा है। उसके गर्भ में हीरे, मोती, सोना, चांदी, खनिज और कौन सी औषधि नहीं।
अचानक हमारे कामकाज ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ना चालू कर दिया।
अत्यधिक प्रदूषण से प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा, और बिगड़े पर्यावरण का असर इंसान पर भी पड़ने लगा। जहरीली हवा और जहरीला भोजन इंसान को बीमार और कमजोर करने लगा। इंसान परेशान हो, फिर प्रकृति की गोद में जाने लगा। ।
हमें ही हमारी प्रकृति और पर्यावरण को सुधारना होगा। ओजोन लेयर की चिंता अब वैज्ञानिकों की नहीं, आम आदमी की चिंता बन चुकी है। कहीं बेमौसम आंधी तूफान और बारिश और कहीं भयंकर सूखा, सब कुछ हमारा ही तो करा कराया है।
पौधारोपण और वृक्षारोपण तो एक व्यक्तिगत और सामूहिक शुभ संकल्प है, सद्प्रयास है, अपने अपने स्तर पर इसे जारी रखना चाहिए, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के प्रति हमारी उपेक्षा और लापरवाही नाकाबिले बर्दाश्त है। सरकार की अपनी मजबूरियां है, पौधारोपण जैसा ही जन जागरण ही इसका एकमात्र विकल्प है। एक तरफ टूटते परिवार,
पारिवारिक मतभेद, सिंगल चाइल्ड और असुरक्षा और दूसरी ओर औलाद और भरे पूरे परिवार के सुख की चाह, गरीबी, अशिक्षा, धार्मिक मान्यता और नैतिक पतन, और इनके बीच त्रिशंकु, बेचारा आम इंसान। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈