प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “विदा वेला !। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 184 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – विदा वेला ! ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आ गई लो विदा वेला, नयन गीले अश्रु छाये

और प्रायः यह घड़ी आती सदा ही बिन बुलाये ।।१।।

*

आगमन औ’ गमन कुछ भी जब न अपने हाथ में हो

यही कम सौभाग्य क्या हम रह सके कुछ साथ सँग जो ।।२।।

*

जा रहे हो दूर हो मजबूर तो मधुरिम विदाई

पंथ हो, आनंदमय, उत्कर्षमय, कल्याणदायी ।।३।।

*

साथ रहते यदि हुई हों भूल तो सब भूल जाना

कामना है याद रखना, प्रीति का नाता निभाना ।।४।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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