श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 93 ☆ देश-परदेश – सोने की सीढ़ी चढ़ना ☆ श्री राकेश कुमार ☆
विगत दिन एक परिचित ने सोने की सीढ़ी चढ़ने की रस्म अदायगी के लिए हमें मैसेज द्वारा आमंत्रित किया था। फोन द्वारा हमने इस बाबत जानकारी प्राप्त करी, हमारे तो होश ही फक्ता हो गए। प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी सोने की सीढ़ी पर घर के सबसे बड़े बुजर्ग का पैर छुआ जाता हैं।
परिचित ने बताया उनके यहां पौत्र का जन्म हुआ है। उनकी माता जी अभी जीवित है, इसलिए हम उनको सोने की सीढ़ी चढ़ा कर, चौथी पीढ़ी की खुशी मनाएंगे।
परिचित के सभी बच्चे अच्छे स्कूल से पढ़े लिखे होने के साथ ही साथ सुयोग्य श्रेणी में आते हैं। उससे हमने कहा तुम्हारे यहां तो चौथी पीढ़ी (पोत्री) तीन वर्ष पूर्व ही आ चुकी थी।
उसने बताया की हमारे समाज में तो बेटों से ही पीढ़ी गिनी जाती है, बेटियों से नहीं। इस विषय पर उससे हमारी लम्बी बहस भी हो गई। हम कभी कभी दुश्मन देश पाकिस्तान के ड्रामे (सीरियल) देखते है, जिसमें सम्पन्न और पढ़े लिखे परिवारों में अक्सर बेटे को महत्व दिया जाता हैं।
हमने भी परिचित को कह दिया, कि तुम्हारे और पाकिस्तान के लोगों में क्या फर्क रह गया है ? पढ़े लिखे होकर भी तुम इस कुत्सित विचार धारा वाली तालिबानी सोच के साथ जीवनयापन कर रहे हो।
हमने तो उसे स्पष्ट मना कर दिया कि मैं ऐसी तुष्ट समझ के साथ वालों से कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं।
परिचित हंसते हुए बोला, देख लो वर्षा ऋतु के इस मौसम में मुफ्त की असीमित दाल बाटी और चूरमा का रसवादान से चूक जाओगे। हम भी आखिर इंसान है, जबान के स्वाद के सामने हथियार डाल, समय से पूर्व ही कार्यक्रम में पहुंच गए।
© श्री राकेश कुमार
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