श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – हमें ऐतवार है वफा पर अपनी…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 223 ☆
☆ एक पूर्णिका – हमें ऐतवार है वफा पर अपनी… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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बंद जब उनकी ज़ुबां होती है
बात नजरों से बयां होती है
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मोम क्या है वो क्या समझेंगे
संग-दिल जिनकी अदा होती है
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तिश्नगी प्यार की बढ़ी इस कदर
लरजते होठों से अयां होती है
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सुकूं रूह को मिले जो प्यार में
तनवीर ऐसी कहाँ होती है
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याद उनकी लाती है बे- सुधी
देख उनको उम्मीदें जवां होती हैं
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हमें ऐतवार है वफा पर अपनी
पर तकदीर सभी की जुदा होती है
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“संतोष” प्यार में खोए हैं इस तरह
न आग लगती है, न धुआँ होती है
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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