डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘माँ दूसरी तो बाप तीसरा‘। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 144 ☆
☆ लघुकथा – माँ दूसरी तो बाप तीसरा ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆
‘करती क्या हो तुम दिन भर घर में? सोती रहती हो क्या ?‘ पति की इस बात ने मानों आग में घी का काम किया। सविता दिन भर की थकी थी, गुस्से में कह गई – ‘हाँ ठीक कह रहे हो तुम, मैं कुछ नहीं करती घर में। बिना मेरे किए ही होते हैं तुम्हारे और बच्चों के सब काम इस परिवार में। मैं तो सोती रहती हूँ ऐसे ही बच्चे पल रहे हैं, बड़े हो जाते हैं और रिश्तेदार भी —–?’
‘बस भी करो, अब अपना वही रोना धोना मत शुरू करो’- पति ने झिड़कते हुए कहा।
बचपन से यह वाक्य दिल में फाँस- सा गढ़ा था, जब दिन भर घर के कामों में खटती माँ और दादी को घर के पुरुषों से कहते सुनती – ‘दिन भर घर में रहती हो, कौन सा पहाड़ उठा रही हो? करती क्या हो घर में सारा दिन ?’ वे नहीं दे पातीं थीं हिसाब घर के उन छोटे – मोटे हजार कामों का जिनमें सारा दिन कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता| इन कामों का कोई मोल नहीं, कहीं गिनती नहीं। हाँ, उनका शरीर जरूर लेखा-जोखा रखता उनके दिन भर के कामों का। पिंडलियों में दर्द बना ही रहता और कमर दोहरी हो जाती काम करते -करते।
पति तो अपनी बात कह कर चला गया लेकिन सोचते – सोचते अजीब – सी कड़वाहट घुल गई उसके मन में, आँखें पनीली हो आई| उभरी कई तस्वीरें, गड्ड–मड्ड होते थके, कुम्हलाए चेहरे- माँ, दादी और———-| ‘उनके मन में भी न जाने कितनी बातें खौलती रहती होंगी भीतर ही भीतर पर–?’
ऐसा नहीं कि इससे पहले उसने यह वाक्य न सुना हो पर आज पति के ‘इस’ वाक्य ने दिल-दिमाग में विचारों का उबाल – सा ला दिया, लावा बह निकला था – ‘पूछते हैं कि सारा दिन क्या करती हो घर में, पर पत्नी की असमय मृत्यु हो जाने पर जल्दी ही लाई जाती है एक नई नवेली दुल्हन, घर में कुछ ना करने के लिए ???’ पति द्वारा बच्चों की देखभाल के नाम पर की गई दूसरी शादी के बारे में कहा जाता है ‘माँ दूसरी तो बाप तीसरा हो जाता है?’
© डॉ. ऋचा शर्मा
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