श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सितमगर…“।)
अभी अभी # 435 ⇒ सितमगर… श्री प्रदीप शर्मा
सितमगर कोई स्मगलर अथवा बर्गलर नहीं होता। सितमगर अन्याय करने वाले अथवा अत्याचारी को कहते हैं !
सिकदर भी आये कलदार भी आये
न कोई रहा है न कोई रहेगा
है तेरे जाने की बारी विदेशी
ये देश आज़ाद हो के रहेगा
मेरा देश आज़ाद हो के रहेगा। इन विदेशियों में आप बाबर अकबर के समूचे मुगल वंश और फिरंगी आततायियों को भी शामिल कर सकते हैं।
आई हैं बहारें मिटे ज़ुल्म-ओ-सितम
प्यार का ज़माना आया
दूर हुए ग़म।
राम की लीला रंग लाई
श्याम ने बंसी बजाई। ।
तो क्या ज़ुल्मो सितम इतनी आसानी से खतम ?
जी नहीं जनाब, सितम तो अब शुरू होने वाले हैं ;
तीर आँखों के जिगर के
पार कर दो यार तुम
जान ले लो या तो जान को
निसार कर दो यार तुम।
सिर्फ तीर ही नहीं, अभी तो बिजलियां भी गिरेंगी, देखते जाइए ;
शोख़ नज़र की बिजलियाँ,
दिल पे मेरे गिराए जा
मेरा ना कुछ ख़याल कर,
तू यूँ ही मुस्कराए जा।।
जी हां, यही सब सितम ढाने के तरीके हैं। लेकिन अगर जुल्मी जब अपना सांवरिया ही हो, तो बस यही कहा जा सकता है ;
ज़ुल्मी हमारे सांवरिया हो राम
कैसे गुजरेगी हमरी
उमरिया हो राम ;
जब प्यार में सितम होता है, तो वह इंतकाम नहीं, एक इम्तहान होता है। अंतिम बानगी देखिए ;
सितम या करम
हुस्न वालों की मर्ज़ी
यही सोच कर
कोई शिकवा ना करना।
सितमगर सलामत
रहे हुस्न तेरा
यही उस को मिटने से पहले दुआ दे
जो उन की तमन्ना है, बरबाद हो जा ..
अगर आप भी शौक रखते हैं तो ;
इधर आ सितमगर ..
हुनर आजमाएं ….
तू तीर आजमा…..
हम जिगर आजमाएं…!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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