आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है बुन्देली मुक्तिका : बखत बदल गओ…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 198 ☆
☆ बुन्देली मुक्तिका : बखत बदल गओ… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆
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बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
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लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
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पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
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पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
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झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तेन अश्रु ढुरा रए।।
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© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
१२-४-२०१७
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