श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “यादों की परछाँई…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 66 ☆ यादों की परछाँई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
बतियाते हैं
दिन भर दिन से
रात बदलते करवट कटती।
तिथि बाँचते
पोथी पत्तर
तीज पर्व हैं आते-जाते
कृष्ण पक्ष से
शुक्ल पक्ष तक
सूरज रखते चाँद उठाते
नक्षत्रों के
चरण पकड़ते
भाग्य रेख कब बढ़ती घटती ।
गये दिनों का
लेखा जोखा
ख़ालीपन हाथों में लेकर
चुपके-चुपके
वर्तमान को
भरते रहे तसल्ली देकर
बैठ अनागत
आहट सुनते
केवल उम्र पहाड़ा रटती।
उढ़ा मखमली
चादर तन की
रिश्तों की बगिया महकाई
जोड़-जोड़ कर
सिलते हरदम
संबंधों की फटी रज़ाई
अब यादों की
परछाँई में
अपनेपन की छाँव भटकती।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈