सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – गुरुवर वंदना…।
रचना संसार # 16 – नवगीत – गुरुवर वंदना… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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अंतस में विश्वास भरो प्रभु,
तामस को चीर।
प्रेम भाव से जीवन बीते,
दूर हो सब पीर।।
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मान प्रतिष्ठा मिले जगत में,
उर यही है आस।
शीतल पावन निर्मल तन हो,
सुखद हो आभास।।
कोई मैं विधा नहीं जानूँ
गुरु सुनो भगवान।
भरदो शिक्षा से तुम झोली,
दो ज्ञान वरदान।।
शिष्य बना लो अर्जुन जैसा,
धनुषधारी वीर ।
*
बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी,
खोलो प्रभो द्वार।
न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं,
टूटे नहीं तार।।
आप कृपा के हो सागर,
प्रभो जीवन सार।
रज चरणों की अपने देदो,
गुरु सुनो आधार।।
सेवा में दिनरात करूँ प्रभु,
रहूँ नहीं अधीर।
*
एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं,
रचूँ फिर इतिहास।
सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ,
हो जग उजास।।
ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो,
कहें तीरथ धाम।
रसधार बहादो अमरित की,
जपूँ आठों याम।।
दीपक ज्ञान का अब जला दो,
गुरुवर दानवीर।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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