प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत  – “आओ नेह बढ़ायें। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 189 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – आओ नेह बढ़ायें ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धो के मन का मैल आपसी, हिलमिल के हम गायें, आओ नेह बढ़ायें ।’

*

जहाँ जहाँ भी अंधियारा है, बुझा-बुझा जीवन-तारा है

घर को भूल जहाँ उलझन में भटक रहा मन-बंजारा है

आशा की किरणें बिखराने, आओ दीप जलायें ।। १ ।।

*

जहाँ भी सँकरा गलियारा है, साँस घुटी, जीवन हारा है

बेबस आहे, हूक हृदय में, आंखों में आँसू-धारा है

ढांढस देने उन दुखियों को, आओ गले लगायें ।। २ ।।

*

बिना सहारा भूखा-प्यासा मन फिरता मारा-मारा है

प्रेम नहीं तो जीवन-पथ में अँधियारा ही अँधियारा है

लाने नया सबेरा जग में ममता को अपनायें ।।३।।

*

धोके मन का मैल आपसी हिलमिल के सब गायें, आओ नेह बढ़ायें ।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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