श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “गाँव में शहर…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 67 ☆ गाँव में शहर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

कच्चे से पक्के

घर हो गये मकान

गाँवों में घुस गया शहर।

*

चौपालें ठंडी

आँगन गुमसुम

छप्परों ने पाले

छतों के भरम

*

सीढ़ियाँ उतरते

हैं सहमें दालान

खिड़की में खुल गया शहर।

*

पगडंडी पूछती

सड़क का पता

खेतों की मेड़ें

हुईं लापता

*

सूरज के पाखी

भूल गए उड़ान

आलस बन चुभ गया शहर।

*

मेल मुलाक़ातें

खुरदरे ख़याल

चाय पान के टपरे

नित नये सवाल

*

पीढ़ियाँ जड़ों से

बस खोखली ज़ुबान

साँसों में घुल गया शहर।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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