श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दास – बोध…“।)
अभी अभी # 449 ⇒ दास – बोध… श्री प्रदीप शर्मा
अगर सबका मालिक एक हुआ, तो हम सब उसके दास हुए। जो अपनी मर्ज़ी का मालिक है, वह किसी का दास नहीं। जिसे अपने कदमों पर सबको झुकाने में मज़ा आता है, उसे मालिक नहीं तानाशाह कहते हैं। शाब्दिक अर्थ को लिया जाए तो दास एक तुच्छ सेवक है। हर भक्त ईश्वर का एक तुच्छ सेवक है, दास है।
ईश्वर के सभी भक्त दास हैं, कबीरदास, सूरदास, रैदास और भगवान राम के तुलसीदास। सभी भक्त समर्थ हैं, रामदास हैं।
दास में अहंकार नहीं, सात्विक अपराध-बोध है,
तभी वह कह पाता है –
प्रभु मोरे अवगुन चित न धरो !
यही दासबोध है।।
सामंती युगमे दास दासियाँ हुआ करती थीं। कैकई की भी एक दासी थी, जिसके नाम से ही मन थर्रा जाता है। दासों के साथ अच्छा सलूक नहीं किया जाता था। देवदास अगर सिर्फ पारो का दास था तो एक देवदासी आराधना गृह की एक समर्पित दासी।
समय के साथ दास की कालिख घुलने लगी। सभी दास लोकतंत्र में सेवक हो गए। भगवानदास पढ़-लिखकर डॉ भगवानदास हो गए और श्यामसुन्दरदास डॉ श्यामसुंदर दास। अंग्रेजों ने सेवक को सर्वेंट कर दिया तो वे सभी सिविल सर्वेंट हो गए। सर्वेंट अफसर बन गए, तुच्छ-सेवक बाबू-चपरासी बन गए। जनता के सेवक मंत्री बन गए, उदास जनता फिर उनकी दास बन गई, चेरि बन गई।।
दास भक्ति का प्रतीक है, समर्पण की मिसाल है।
हम अगर आज भी अपने अवगुणों के दास हैं, तो ऐसी दास-प्रथा की जंजीरों को तत्काल तोड़ना होगा। हम केवल मात्र परम-पिता परमेश्वर के दास हैं। उनकी शरण मे जाते ही हम अतुलितबलधारी भक्त शिरोमणि दासों-के-दास हनुमान के समान हो सकते हैं। ईश्वर का दास न अन्याय सहता है, न किसी का अपमान करता है। वह सर्व-गुण-सम्पन्न है, समर्थ है, राम का दास है, और यही सच्चे अर्थों में “दास-बोध” है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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