श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)
संजय दृष्टि – समीक्षा का शुक्रवार # 11
कविता के आर-पार : शोधकर्ता- डॉ. रजनी रणपिसे समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज
पुस्तक- कविता के आर-पार : कवि दुष्यंतकुमार
विधा- लघु शोध
शोधकर्ता- डॉ. रजनी रणपिसे
तुम्हारी कहन-मेरी कहन ☆ श्री संजय भारद्वाज
शाश्वत प्रश्न है, ‘मनुष्य लिखता क्यों है?’ स्थूल रूप से माना जाता है कि लेखक या कवि अपनी पीड़ा से मुक्त होने के लिए लिखता है। कभी-कभार वह अपनी प्रसन्नता को विस्तार देने के लिए भी लिखता है। लेखन, भावनात्मक विरेचन है। अगला प्रश्न है कि पाठक किस प्रकार की रचना को श्रेष्ठ मानता है? जिस रचना के भावों, पात्रों, स्थितियों को पाठक अपने भावविश्व के निकट पाता है, उसे बेहतर मानता है। जब रचनाकार के सृजन की व्यक्तिगत लघुता, पाठक की अनुभूति के साथ तादात्म्य स्थापित करती है, अनगिनत पाठकों की सह-अनुभूति पाती है तो प्रभुता में परिवर्तित हो जाती है। समय साक्षी है कि वहीं शब्दकार सफल हुआ जिसने लघुता से प्रभुता की यात्रा की।
दुष्यंतकुमार उन रचनाकारों में से हैं जिन्होंने जीवन की अल्पावधि में ही यह उपलब्धि हासिल की। इस अपूर्व प्रतिभावान कवि ने छोटे-से जीवन में विशेषकर हिंदी ग़ज़ल को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। वे उन कवियों में रहे जिनकी पारंपरिक विषयों से मुक्त कराके ग़ज़ल का विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। यही कारण था कि दुष्यंतकुमार की ग़ज़ल में आम आदमी अपनी समस्याओं की झलक देखने लगा।
देखना, प्रकृति द्वारा सामान्यतया सबको एक समान मिला वरदान है। देखना एक होते हुए भी, विधाता ने प्रत्येक को दृष्टि अलग-अलग दी। लेखक/ कवि अपनी स्थितियों, अपने परिवेश, अपने भाव विश्व और अपनी वैचारिकता से उपजी दृष्टि से किसी विषय को शब्द देता है। पाठक / अनुसंधानकर्ता अपनी दृष्टि से उस रचना को अपनी तरह से समझने का प्रयास करता है। भिन्न-भिन्न पाठकों / अनुसंधानकर्ताओं यह प्रयास किसी रचनाकार की रचनाओं के अनुशीलन को जन्म देता है।
‘कविता के आर-पार : कवि दुष्यंतकुमार’ डॉ. रजनी रणपिसे द्वारा दुष्यंतकुमार की कविताओं का अनुशीलन है। डॉ. रणपिसे स्वयं कवयित्री हैं। उन्हें हिंदी साहित्य के अध्यापन का लम्बा अनुभव है। आशा की जानी चाहिए कि उनका व्यापक दृष्टिकोण दुष्यंतकुमार की कविता के चेतन तत्वों और समष्टि भाव की तार्किक मीमांसा करने में सफल रहेगा। बकौल स्वयं दुष्यंतकुमार-
अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ,
तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ।
डॉ. रजनी रणपिसे को हार्दिक शुभकामनाएँ।
© संजय भारद्वाज
नाटककार-निर्देशक
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈