प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण गीत – “मोहब्बत…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 191 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – गीत – मोहब्बत… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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मोहब्बत एक पहेली है जो समझाई नहीं जाती ।
है दिल की वह सहेली जो कि जब आई नहीं जाती ।।
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किसी की याद में मन भूल सब, बेचैन रहता है,
अकेला बात करता, खुद ही सुनता, खुद से कहता है।
कभी अपने में हँसता या कभी खुद चैन खोता है
मगर मन की लगी औरों से बतलाई नहीं जाती ।। १ ।।
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जलाती तन को फिर भी मन को अक्सर खूब भाती है।
भुलाने की करो कोशिश तो ज्यादा याद आती है ।
जो अच्छी लगती सबको, पै जमाना जिस पै हँसता है
बढ़ाती ऐसी बेचैनी जो बतलाई नहीं जाती ।। २ ।।
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सुहानी रोशनी है जिससे दुनियाँ में उजाला है,
मिली जिसको ये सचमुच वो बड़ी तकदीर वाला है।
सभी तो चाहते, पाते मगर कुछ ही हजारों में है
उलझन ऐसी मीठी जो कि सुलझाई नहीं जाती ।। ३ ।।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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मो. 9425484452
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