श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल शायरी का तुम भी…” ।)

? ग़ज़ल # 135 – “शायरी का तुम भी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मौत को तुम बहुत आसान समझते हो,

उसे चंद लम्हों का मेहमान समझते हो।

*

बीस पच्चीस ग़ज़ले कहकर मशहूर हुए,

शायरी का तुम भी अरकान समझते हो।

*

चार-पाँच कुश्तियाँ लड़ कूदने फाँदने लगे,

तुम ख़ुद को बड़ा पहलवान समझते हो।

*

तुमने आठ-दस किताब समीक्षाएँ लिखीं,

तब से तुम ख़ुद को कद्रदान समझते हो।

*

यार तुम बड़े खेमेबाज़ निकले महफ़िल के,

आतिश ख़ुदको अदब की शान समझते हो।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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