श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 144 – मनोज के दोहे ☆
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नेक दृष्टि सबकी रहे, होती सुख की वृष्टि।
जग की है यह कामना, मंगल मय हो सृष्टि।।
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पोर्न फिल्म को देख कर, बिगड़ा है संसार।
नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार।।
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शिष्टाचार बचा नहीं, बिगड़ रहे घर-द्वार।
संस्कृति की अवहेलना,है समाज पर भार।।
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तिलक लगाकर माथ में, सभी बने हैं संत।
अंदर के शैतान का, करा न पाए अंत।।
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अंतरिक्ष में पहुंँच कर, मानव भरे उड़ान।
धरा सुरक्षित है नहीं, बिगड़ रही पहचान।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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