श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। आज से प्रत्येक शुक्रवार हम आपके लिए श्री संजय भारद्वाज जी द्वारा उनकी चुनिंदा पुस्तकों पर समीक्षा प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

? संजय दृष्टि –  समीक्षा का शुक्रवार # 12 ?

?फिर भी दिल है हिंदुस्तानी — कहानीकार – श्री महेश दुबे ?  समीक्षक – श्री संजय भारद्वाज ?

पुस्तक का नाम – फिर भी दिल है हिंदुस्तानी

विधा – छोटी कहानियाँ

कहानीकार-  श्री महेश दुबे

? छोटी कहानियाँ, बड़े संदर्भ  श्री संजय भारद्वाज ?

कहानी मनुष्य को ज्ञात सबसे पुरानी विधा है। धारणा है कि कहानी का जन्म मनुष्य के साथ ही हुआ। वस्तुतः कहने-सुनने, स्वयं को व्यक्त करने की इच्छा मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है। कहानी रोचकता से इस मानसिक विरेचन को पूरा करती है। सरलता और सुबोधता के चलते कहानी सर्वाधिक संप्रेषणीय विधा हो जाती है। यही कारण है कि स्पष्टीकरण के लिए गूढ़ दर्शन भी कहानी लेखन का सहारा लेता है।

लेखन, निरीक्षण की उपज है। विशेषकर कहानी के संदर्भ में जहाँ अपनी बात पात्रों के माध्यम से रखनी हो, यह निरीक्षण अधिक सूक्ष्मता की मांग रखता है। अपने भीतर एक कहानी समेटे हमारे आसपास अनेक घटनाएँ घट रही होती हैं। इन्हें अनगिन लोग देखते हैं किंतु इनमें कुछ ही के देखने में दृष्टि का अंतर्भाव होता है।

महेश दुबे ऐसे ही दृष्टि संपन्न कहानीकार हैं। वे मूलरूप से कवि हैं। कविता के गर्भ में एक कहानी छिपी होती है जबकि हर कहानी, एक कविता का विस्तार होती है। यही कारण है कि महेश दुबे की कवि दृष्टि, कहानी में संवेदना के सूक्ष्म तंतुओं को स्पंदित करने में सफल रही है।

‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ संग्रह की कहानियाँ, कहानीकार की देखी, भोगी, समझी, सुनी घटनाओं की कहन हैं। अपनी कहन की पृष्ठभूमि में उपस्थित घटनाओं का सकारात्मक आकलन लेखक ने किया है। बिना कोई लेबल लगाए, आदमी को आदमी की तरह देखने की यह सकारात्मकता इन कहानियों का शक्तिबिंदु है।

पटकथा लेखन के क्षेत्र में कहा जाता है कि मनुष्य जीवन की कहानियाँ छत्तीस फ्रेमों में बँटी हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ अमूमन इन सभी फ्रेमों से गुज़रती हैं। आदमी के सारे रंग, रंगों के शेड्स, स्थिति-परिस्थिति, आशा-आशंका, भावना-संभावना को ये प्रकट करती हैं।

साहित्य बेहतर मनुष्य की खोज है। प्रस्तुत कहानियाँ बेहतर मनुष्य को हमारे सामने रखती हैं। विशेष बात है कि ये कहानियाँ बेहतर मनुष्य गढ़ती नहीं अपितु हमारे आसपास, इर्द-गिर्द के नितांत साधारण से परिचित व्यक्ति की ओर इंगित करती हैं और कहती हैं, ‘देखो, यह है बेहतर मनुष्य।’ बेहतर मनुष्य के माध्यम से बेहतर मनुष्यता और बेहतर संसार की यात्रा कराती हैं ये कहानियाँ।

शब्दों की संख्या की दृष्टि से ये कहानियाँ छोटी हैं। अतः पात्रों के चित्रण की अपनी सीमाएँ हैं। पात्र की तुलना में इन कहानियों में परिवेश का चित्रण अधिक मुखर है। भाषा, देशकाल के अनुरूप और सरल है। कथानक सशक्त हैं। कथोपकथन को कहानीकार ने संक्षेप में बहुत प्रभावी ढंग से बांधा है। कथ्य और शिल्प में साधा गया ‘बोनसाई’ संतुलन इन कहानियों की प्रभावोत्पादकता को बहुआयामी करता है। मैं इन्हें बड़े संदर्भ वाली छोटी कहानियाँ निरूपित करूँगा।

कहानियों के जगत में महेश दुबे का प्रकाशित पुस्तक के रूप में यह पहला कदम है। यह कदम इतना सहज और आत्मविश्वास से भरा है कि पाठक इसे हाथों-हाथ अपना लेगा, इसका विश्वास है।

© संजय भारद्वाज  

नाटककार-निर्देशक

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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