श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “धर्मपत्नी पर व्यंग्य…“।)
अभी अभी # 460 ⇒ धर्मपत्नी पर व्यंग्य… श्री प्रदीप शर्मा
वैधानिक चेतावनी – पति पत्नी के बीच हँसी मजाक और नोक झोंक आम है, लेकिन पत्नी की हँसी अथवा उसका मजाक उड़ाना गलत है। अपनी धर्मपत्नी पर व्यंग्य लिखने के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हंसना सेहत के लिए अच्छा है। कोई एक हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा हैं, जो खुद गंभीर होकर अपनी ही घराड़ी, यानी घर वाली की हंसी उड़ाते हैं, और श्रोताओं से दाद बटोरते हैं। काका हाथरसी ने भी अधिकतर हास्य के कारतूस काकी पर ही छोड़े हैं। इन दोनों की पत्नियों को आपने कार्टून के रूप में ही देखा होगा, कभी पत्नी के रूप में नहीं। हम इसे हास्य बोध नहीं मानते। हां, कभी एक डा.सरोजनी प्रीतम हुआ करती थी, जिनकी हंसिकाएं भी अधिकतर महिलाओं पर ही केंद्रित होती थी और पुरुषों पर कम।
व्यंग्य एक गंभीर विधा है और इसका उपयोग पति पत्नी के नाजुक संबंधों पर नहीं किया जा सकता। विसंगति पर तो व्यंग्य लिखा जा सकता है, लेकिन जो धर्मपत्नी अथवा जीवन संगिनी है, उस पर व्यंग्य लिखना, ना केवल टेढ़ी खीर है, अपितु बड़ी हिम्मत का काम है।।
जिस तरह डायन भी एक घर छोड़ देती है, हर व्यंग्यकार अपनी धर्मपत्नी को छोड़ आन गांव पर व्यंग्य लिख सकता है। उसकी व्यंग्य दृष्टि राजनीति, धर्म, भ्रष्टाचार, लाल फीताशाही और समाज और विश्व में होने वाली सभी घटनाओं पर पड़ सकती है, लेकिन उसकी पास की दृष्टि जवाब दे जाती है, जब उसकी धर्मपत्नी पास होती है।
और तो और कुछ ऐसे व्यंग्यकार जिन्होंने गृहस्थी का स्वाद ही नहीं चखा, वे भी इस मामले में फूंक फूंक कर कदम रखते हैं।
उनकी तर्क की खान और उनके व्यंग्य बाणों में इतनी ताकत कहां, जो अपनी कलम की धार किसी के घरेलू मामले की ओर भी कर दे।।
अव्वल तो पति की मात्रा ही छोटी होती है, और पत्नी की बड़ी। वजन में भी अक्सर पत्नियां, पति की तुलना में भारी ही होती है।
पति अगर हॉफ तो पत्नी बैटर हॉफ। वैसे आम तौर पर तो हास्य कवि ही मोटे देखे गए हैं, व्यंग्यकार तो बस, किसी तरह ठीकठाक ही होते हैं। अगर कहीं गलती से पत्नी दुबली और वे मोटे निकल गए, तो व्यंग्य की सुई भी पति की ओर ही घूम जाती है।
वैसे हम अगर शब्द बाण और व्यंग्य बाणों की चर्चा करें, तो पत्नी के शब्द अचूक रामबाण होते हैं, जिसके आगे कोई भी धुरंधर धनुर्धर, व्यंग्यकार, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अपने शस्त्र त्याग शरणागत हो जाता है। पत्नी द्वारा निष्काम व्यंग्य की गीता का श्रवण पाठ सुनने के बाद ही, पति कलम उठाता है। धर्मपत्नी पर केवल प्रेम वर्षा ही संभव है, व्यंग्य बाण के लिए पूरा जगत पड़ा है।।
धर्मपत्नी पर व्यंग्य लिखना अंगारों पर फूंक फूंक कर कदम रखने से भी अधिक जोखम भरा काम है। जब घर में चूल्हा नहीं जलता तब धर्मपत्नी अपने व्यंग्यकार पति की छपी रचनाएं जला जलाकर चाय गर्म करती है। बड़ी अलबेली होती है, व्यंग्यकार के घर की सरकार। यह एक ऐसी सरकार होती है, जो सिर्फ तारीफ और प्रशंसा के बल पर ही चलती है। यहां व्यंग्य सिर्फ चूल्हा जलाने के ही काम आता है।
कभी कभी गंगा उल्टी भी बहने लगती है, जब ऊंट पहाड़ के नीचे आता है, और घर की पत्नी ही व्यंग्य में डूबी कलम उठा लेती है। तब पतिदेव को घर गृहस्थी के सभी काम दफ्तर के काम की तरह ही करने पड़ते हैं। क्योंकि सैंया कोतवाल नहीं, यहां सजनी व्यंग्यकार जो हो जाती है। पत्नी तो रूठकर मायके जा सकती है, पति तो बेचारा सिर्फ दफ्तर ही जा सकता है।।
व्यंग्यकार की कलम और धर्मपत्नी की जुबां के बीच जब भी युद्ध हुआ है, कलम हमेशा नतमस्तक हुई है। वास्तव में कुछ ना कहने की छटपटाहट ही तो व्यंग्य को जन्म देती है। कालिदास हो अथवा तुलसीदास, सबकी महानता के पीछे उनकी पत्नी का ही तो हाथ है।
आदमी संत, सन्यासी अथवा एक अच्छा व्यंग्यकार यूं ही नहीं बन जाता। जब हर सफल व्यक्ति के पीछे एक महिला का हाथ होता है, तो क्या एक व्यंग्यकार की सफलता का श्रेय उसकी पत्नी नहीं ले सकती। पत्नी की जली कटी सुनने के बाद जो व्यंग्य में पैनापन आता है, वह देखते ही बनता है। धर्मपत्नी की तारीफ से बड़ा कोई व्यंग्य नहीं। जो व्यंग्यकार अपनी बीवी से करे प्यार, वह उसकी तारीफ से कब करे इंकार।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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