श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “हवेली”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 203 ☆

🌻लघु कथा🌻 हवेली 🌻

बहुत पुरानी हवेली। हवेली का नाम लेते ही मन में उठने लगता है, शानदार बड़े-बड़े झरोखे, बड़े-बड़े लकड़ी के कशीदाकारी दरवाजे, यहाँ से वहाँ तक का फैला हुआ दालान, बीचों बीच बड़ा सा आँगन, चारों तरफ किनारों में तरह-तरह के पुष्प लता के सुंदर-सुंदर पेड़ पौधे।

परंतु जिस हवेली की बात हम कह रहे हैं वह तो सिर्फ एक खंडहर दीवाल सी शेष रह गई थी। बंद दरवाजे और दरवाजे की छोटी-छोटी खिड़की नुमा झरोखे से झांकती दो आँखें। कुछ अपनों का बिछोह और कुछ प्राकृतिक कहर। जो पास है वह आना नहीं चाहते।

हवेली मानो कह रही हो काश वह पल लौट आए और यह फिर से हरा भरा हो जाए। कोई भी आना-जाना पसंद नहीं करता था। सिर्फ एक नौकर का आना-जाना था। जो बाहर से सामान आदि लाते जाते दिखता। पता नहीं रहने वाले कैसे रह लेते होंगे?

जय गणेश, जय गणेश बच्चे ठेले के साथ धक्का मुक्की करते चले जा रहे थे और ठेले में गणपति बप्पा विराजमान थे। बारिश ने कहर मचाया। छाँव की खोज करते भगवान को पन्नी तालपतरी से ढकते बच्चे बड़े सभी इस हवेली के पास पहुंचे थे।

अचानक दो हाथ झरोखे से इशारे से लगातार बुला रही थी। बच्चों ने देखा, बस उन्हें किसी से और कोई मतलब नहीं। अपने बप्पा को ठेले सहित हवेली के अंदर ले गए।

बारिश से राहत मिली लगातार हो रही बारिश से सभी परेशान थे। कांपते हाथों से बड़ी सी थाली में थोड़ा सा खाने का सामान और साथ में दो लोटे जल के साथ एक सयानी बुढ़ी दादी निकल कर आई।

आज से पहले वह इतनी खुश कभी नहीं दिखी थीं। आकर कहने लगी तुम सब यह खाओं।

बच्चों ने आँखों – आँखों में निर्णय लिया। इससे अच्छी जगह गणेश पंडाल नहीं बनेगा। बस फिर क्या था तैयारी शुरू।

शाम के आते- आते, जगमग रोशन हवेली ताम-झाम और बप्पा की जय, जय गणेश, हवेली जिंदाबाद के नारे लगने लगे।

दीपों की थाल लिए आज हवेली से सोलह श्रृंगार कर दादा- दादी उतरकर आने लगे। एक बार फिर से हवेली गुलजार हो गई।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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