श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 70 ☆ मन बावरा… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
☆
बाँसुरी पर किसी ने
अधर रख दिए
भोर का मन खिला
बावरा हो गया।
*
देह गोकुल हुई
साँस का वृंदावन
फिर महकने लगा
गंध राधा का मन
*
रास रचती रहीँ
कामना गोपियाँ
सारा मधुवन छवि
साँवरा हो गया।
*
तट तनुजा के
हैं खिलखिलाने लगे
वृक्ष सारे ही
जल में नहाने लगे
*
चोंच भर ले
उजाले की पहली किरन
बृज का आँगन
पावन धरा हो गया।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈