श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है पुस्तक “अच्छे होने की कठिनाई (Difficulty being Good)” लेखक : गुरुचरण दास की समीक्षा।)
पुस्तक चर्चा # 137 – “अच्छे होने की कठिनाई (Difficulty being Good)” लेखक : गुरुचरण दास ☆ समीक्षक – श्री सुरेश पटवा
पुस्तक समीक्षा : कृष्ण प्रयोजन
पुस्तक ; अच्छे होने की कठिनाई
(Difficulty being Good)
लेखक : गुरुचरण दास
समीक्षक : सुरेश पटवा
गुरुचरण दास (जन्म 3 अक्टूबर, 1943), एक भारतीय लेखक, टिप्पणीकार और सार्वजनिक बुद्धिजीवी हैं। वह “द डिफिकल्टी ऑफ बीइंग गुड: ऑन द सटल आर्ट ऑफ धर्म” के लेखक हैं जो महाभारत पर सवाल उठाता है कि “क्या हरेक स्थिति में अच्छा बना रहना कठिनाई पूर्ण नहीं होता है।”
लेखक महाभारत के कथानक की ओर मुड़ते हैं, और पाते हैं कि महाकाव्य की नैतिक अस्पष्टता और अनिश्चितता आज की दुनिया की संकीर्ण और कठोर वास्तविकता के कितने क़रीब है। इससे महाभारत का यह श्लोक सही सिद्ध होता है कि :-
जो यहाँ है वही अन्यत्र पाया जाता है।
जो यहां नहीं है वह कहीं नहीं है.
– महाभारत I.56.35-35
“अच्छा होने की कठिनाई पुस्तक धर्म की सूक्ष्मता पर” प्रसिद्ध भारतीय लेखक और राजनयिक गुरचरण दास की एक विचारोत्तेजक और व्यावहारिक पुस्तक है। प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत से सीख लेते हुए, लेखक सद्गुण और धार्मिकता की खोज में व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली जटिल नैतिक दुविधाओं और नैतिक चुनौतियों का पता लगाते हैं।
लेखक ने महाभारत के पात्रों और घटनाओं को एक लेंस के रूप में उपयोग करते हुए मानव व्यवहार और निर्णय लेने को आकार देने वाले रिश्तों, मूल्यों और आदर्शों के जटिल जाल की पड़ताल की, जिसके माध्यम से कर्तव्य, वफादारी, न्याय और प्रकृति जैसे सार्वभौमिक विषयों की जांच की जा सके। अपने अच्छे और बुरे का विश्लेषण के माध्यम से पाठकों को अस्पष्टता, परस्पर विरोधी प्रेरणाओं और नैतिक धूसर क्षेत्रों से भरी दुनिया में नैतिक निर्णय लेने की जटिलताओं की गहन और सूक्ष्म समझ प्रदान करते हैं। जी कि कृष्ण के व्यक्तित्व का एक गूढ़ हिस्सा था।
लेखक आकर्षक कहानी और तीक्ष्ण विश्लेषण के माध्यम से पाठकों को सही और गलत के बारे में अपनी धारणाओं पर पुनर्विचार करने और एक ऐसी दुनिया में अच्छा होने की अंतर्निहित कठिनाइयों से लड़ने की चुनौती देते हैं जो अक्सर धोखे, महत्वाकांक्षा और स्वार्थ को पुरस्कृत करती है। अंततः, “अच्छे होने की कठिनाई” नैतिकता, सदाचार और मानवीय स्थिति की एक सम्मोहक खोज प्रदान करती है, जो पाठकों को नैतिक उत्कृष्टता की खोज में अपने स्वयं के विश्वासों और कार्यों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करती है।
लेखक प्रत्येक पात्र की कहानी लेता है और उसकी व्याख्या इस प्रकार करता है कि प्रत्येक पात्र स्वयं अच्छा करने का प्रयास कर रहा है; जिस स्थिति में वे हैं, वे खुद को सही और गलत, अच्छे और बुरे के अपने मानकों के प्रति जवाबदेह मानते हैं, अंततः उन व्यक्तियों और समूहों के गुणों के रूप में उभरते हैं जिन्हें हम अपने आसपास देखते हैं।
प्रत्येक पात्र, सही होने की कोशिश करते हुए, और अपनी स्थिति को देखते हुए अपने स्वयं के नैतिक मानकों के अनुसार अच्छा बनने की कोशिश करते हुए, एक प्रकार के व्यक्तित्व के रूप में उभरता है; मैं यह नहीं कहूंगा कि वे आदर्श हैं। बल्कि वे लोग हैं, जो अलग-अलग समय में रहे होंगे, लेकिन उन्हीं चीज़ों से प्रेरित हैं जिनसे हमारे आस-पास के लोग प्रेरित होते हैं – ईर्ष्या, कर्तव्य की भावना, निराशा, निस्वार्थता, विजय, पराजय, छल और बदला।
पुस्तक “धर्म” की व्याख्या “एक जटिल शब्द के रूप में करती है जिसका अर्थ विभिन्न प्रकार से गुण, कर्तव्य और कानून है, लेकिन यह मुख्य रूप से सही काम करने से संबंधित है।” यह निश्चित रूप से यह सवाल उठाता है कि क्या एक सार्वभौमिक सत्य, सही और गलत का एक सार्वभौमिक उपाय, “धर्म” की एक सार्वभौमिक परिभाषा हो सकती है। इस बीच, दास एक परिभाषा प्रस्तुत करते हैं। धर्म को उसकी अनुपस्थिति से पहचानना सबसे आसान है: महाभारत धर्म के विपरीत, अधर्म के माध्यम से धर्म के बारे में सिखाने की शैक्षणिक तकनीक का उपयोग करता है। महाभारत का हर चरित्र दुविधा में है, सिवाय कृष्ण और शकुनि को छोड़कर। शकुनि का लक्ष्य हस्तिनापुर का नाश करना है। वहीं कृष्ण का उद्देश्य हस्तिनापुर को मानव कल्याणकारी राज्य में बदलना है।
कृष्ण के चरित्र पर प्रश्न उठाए जाते हैं कि उन्होंने युद्ध में अधर्म का सहारा लिया। जैसे:-
- कुंती को कर्ण के पास भेजकर यह रहस्य उद्घाटन कराया कि वह पाण्डवों का भाई है। कर्ण ने अर्जुन को छोड़कर बाक़ी चार भाइयों का न वध करने का वचन दे दिया। उसने बाक़ी चारों भाइयों को निशाने पर आने के बावजूद छोड़ दिया। इस बात पर उसका दुर्योधन से विवाद भी हुआ।
- कृष्ण जानते थे कि कवच कुंडल युक्त कर्ण अर्जुन से श्रेष्ठ यौद्धा है। उन्होंने अर्जुन के पिता इन्द्र को भिक्षुक बनाकर भेजा और कवच कुंडल उतरवा लिये। जो कि कर्ण का सबसे अहम रक्षा कवच था।
- कृष्ण ने अश्वत्थामा नामक हाथी के मारे जाने को द्रोणाचार्य पुत्र अश्वत्थामा का स्वाँग रच सत्य पर अड़िग युधिष्ठिर के मुँह से आधा झूठ बुलवाया और आधा सच शंखों की ध्वनि में छुपाया।
- कृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध उस समय करवाया जब वे निरस्त्र होकर युद्ध भूमि पर निढाल ही बैठे थे। जबकि किसी निरस्त्र यौद्धा पर वार करना युद्ध के नियमों के विरुद्ध था।
- कृष्ण ने भीष्म पितामह का वध एक शिखंडी की आड़ में युद्ध करते हुए अर्जुन को सुरक्षित रखकर करवाया।
- कृष्ण ने कर्ण का युद्ध उस समय करवाया जब वह युद्ध भूमि में फँसे रथ के पहिये को निकाल रहा था जबकि निहत्थे पर अस्त्र चलाना नियम विरुद्ध था।
- कृष्ण ने अर्जुन के हाथों जयद्ररथ का वध सूर्य ग्रहण का प्रयोग करके करवाया।
- कृष्ण ने दुर्योधन का वध गदा युद्ध में कमर के नीचे नियम विरुद्ध गदावार से करवाया।
इस सभी का उत्तर मिलता है इसी पुस्तक में। महाभारत का आधार चार पुरुषार्थ के सिद्धांत पर रखा है अर्थात् धर्म अर्थ काम और मोक्ष। महाकाव्य का आरंभ सृजन के हेतु “काम” से होता है। ऋषि पराशर के द्वारा धीवर कन्या सत्यवती से नाव में व्यास जी का जन्म, शान्तनु से गंगा देवी के संसर्ग से भीष्म पितामह का जन्म, विचित्र वीर्य की रानियों के व्यास जी के नियोग से धृष्टराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म, कुंती से सूर्य द्वारा कर्ण का जन्म, कुंती से धर्म, इंद्र और वायु देव द्वारा युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम का जन्म और अश्विनीकुमारों द्वारा माद्रि से नकुल सहदेव का जन्म।
ग्रंथ का दूसरे हिस्से का कथानक “अर्थ” केंद्रित है। हस्तिनापुर का विभाजन न होकर इंद्रप्रस्थ का निर्माण, फिर ईर्ष्या द्वेष का नंगा खेल आरंभ होता है। जो सुई की नोक के बराबर भूमि के बराबर भी अर्थ का विभाजन स्वीकार नहीं करता है। युद्ध अपरिहार्य होता जाता है। द्रौपदी के शब्द, चीरहरण और भीम की प्रतिज्ञा युद्ध निर्धारित कर देते हैं।
तीसरा कथानक “धर्म” पर आधारित है। भगवत्गीता का कर्मयोग एक निरंतर धर्म है। युद्ध निश्चित है तो संघर्ष करो। डिगो नहीं। उसके बाद मोक्ष का द्वार खुलेगा।
ग्रंथ की सबसे बड़ी सीख है कि पुरुष चतुष्टय भी समय के साथ बदलते रहते हैं। ब्रह्म के अलावा प्रत्येक चीज और सिद्धांत परिवर्तन शील है। धर्म भी अधर्म के अनुरूप उसे पस्त करने को रूप बदलता है।
असल महाभारत शकुनि और कृष्ण की विचारधाराओं के मध्य है। शकुनि की कूटनीतिक समझ है कि कृष्ण युद्ध में अधर्म का सहारा नहीं लेगा। युधिष्ठिर भी धर्म पुत्र है। राम के त्रेता युग से लेकर कृष्ण के द्वापर तक मनुष्यों का मस्तिष्क कूटनीति की बारीकियों से नीति निपुण हो चुका था। हृदय की शुद्धता कम होती जा रही थी। कृष्ण को यह कूटनीतिक समझ थी कि अधर्म को अधर्म से ही जीता जा सकता है। और अधर्म को परास्त करने हेतु अद्भुत तरीक़े धर्म के पक्ष में जाते हैं। मुख्य बात है धर्म युद्ध जीतना। युद्ध जीतने में स्थापित धर्म की मान्यताओं को धता बताकर नयी मान्यताएँ और परम्परायें स्थापित करना भी धर्म का एक अंग है।
एक घटना को लेते हैं। कृष्ण भीम को इशारा करते हैं कि गदायुद्ध में दुर्योधन की कमर के नीचे जंघा पर गदा से वार करे। जबकि गदायुद्ध के नियमों के अनुसार कमर के नीचे वार नहीं किया जाता। यह अधर्म है। लेकिन कृष्ण की दूरदर्शितापूर्ण कूटनीति बुद्धि देखिए कि भरी सभा में किसी पराई स्त्री को नग्न करके जाँघ पर बिठाने के प्रयत्न भी घोर अधर्म है। उस अधर्म पर चोट करने हेतु जंघा पर गदा प्रहार भी धर्म हो जाता है। यानि धर्म की मान्यता भी समय के साथ रूप बदलती है। यहीं कृष्ण हमेशा प्रासंगिक हैं।
धर्म मानव कल्याण हेतू ‘व्यवस्थित अस्तित्व का अनुशासन’ हैं। हमारे पूर्वजों की दुनिया के विपरीत, जो काली और सफ़ेद थी, जहाँ अपना पेट भरने के लिए जानवरों को मारना ही जीने का एकमात्र तरीका था, जहाँ कोई नैतिक द्वंद्व नहीं था, हमारी दुनिया इस सवाल से भरी है कि क्या सही है और क्या गलत है। हम भूरे काल में रहते हैं, काले या सफेद रंग में नहीं। गुरचरण दास हमारे सामने मौजूद नैतिक दुविधाओं को कई आर्थिक घोटालों से परिचित कराते हुए समय के साथ बदलते धर्म की व्याख्या करते चलते हैं।
अच्छा बनने की कठिनाई से 5 मुख्य सबक
- अच्छा होने की कठिनाई नैतिक निर्णय लेने की जटिलता और भ्रष्ट और अन्यायी दुनिया में नैतिक सिद्धांतों का पालन करने में व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों की जांच करती है।
- पुस्तक धर्म, या कर्तव्य की अवधारणा और व्यक्तियों द्वारा उनके नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों के अनुसार अपने दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के महत्व की पड़ताल करती है।
- लेखक, गुरचरण दास, भारतीय महाकाव्य, महाभारत में पात्रों द्वारा सामना की गई नैतिक दुविधाओं पर प्रकाश डालते हैं, और उनके कार्यों के उनके स्वयं के जीवन और दूसरों के जीवन पर परिणामों पर जोर देते हैं।
- अच्छा होने की कठिनाई नैतिक निर्णय लेने की जटिलताओं से निपटने के लिए आत्म-अनुशासन, संयम और करुणा, सहानुभूति और अखंडता जैसे गुणों को विकसित करने के महत्व पर जोर देती है।
- कुल मिलाकर, यह पुस्तक पाठकों को प्रलोभन, भ्रष्टाचार और नैतिक अस्पष्टता से भरी दुनिया में एक सदाचारी जीवन जीने की चुनौतियों के बारे में मूल्यवान सबक सिखाती है। यह व्यक्तियों को नैतिक उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने और ऐसे नैतिक विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित करता है जो उनके मूल्यों और विश्वासों के अनुरूप हों।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈