श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 130 ☆

गीत – मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

मंजिल की फितरत है कि खुद चल कर नहीं आती है।

जो बहाता है पसीना बस यह उसको ही मिल पाती है।।

****

ऊंची नीची डगर पर   हमेशा लंबा ही    होता सफर है।

बस तू चलते रहना मत छोड़ जाना करकेअगर मगर है।।

छोटी सोच कभी  किसी को  भी जीत नहीं  दिलाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

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जिनके इरादे मेहनत की   स्याही से ही लिखे जाते हैं।

वह किस्मत के पन्ने    कभी भी खाली नहीं   पाते हैं।।

आपकी मेहनत आपको सफलता का मंत्र बतलाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

***

अनुभव का निर्माण नहीं होता ये कर्म करके ही आता है।

जो चाहता है सीखना वो हर गलती से भी सीख जाता है।।

अंधेरे में भी रोशनी आपकी हिम्मत लगातार लाती है।

मंजिल की फितरत है कि खुद चलकर नहीं आती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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