श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बच्चे, मन के सच्चे।)

?अभी अभी # 468 ⇒ बच्चे, मन के सच्चे? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बच्चे जब पैदा होते हैं, तो भगवान का रूप होते हैं, उनमें कोई विकार नहीं होता, अच्छा बुरा, सच झूठ, बड़ा छोटा, और पाप पुण्य से वे परे रहते हैं। लेकिन जैसे जैसे वे बड़े होते जाते हैं, उनकी लीला पर भी माया का प्रभाव पड़ने लगता है।

कौन माता पिता नहीं चाहते, उनकी संतान बड़ी होकर अपने कुल और वंश का नाम ऊंचा करे। उसकी अच्छी परवरिश होती है और उसे अच्छे संस्कार दिए जाते हैं। शिक्षा दीक्षा और नैतिक मूल्यों का भी पाठ पढ़ाया जाता है। सच बोलने की तो उसको एक तरह की घुट्टी ही पिलाई जाती है। फिर अचानक ऐसा क्या हो जाता है कि अम्मा देख, तेरा मुंडा बिगड़ा जाए, वाली नौबत आ जाती है। ।

बच्चे शैतानी करते हैं, और उन्हें बार बार उनके भले के लिए टोका भी जाता है, क्योंकि बालक अबोध होता है, उसे अच्छे बुरे का भान नहीं रहता। नन्हा सा बालक, मौका देखते ही मिट्टी मुंह में भर लेता है, मिट्टी क्या उसका बस चले तो वह सांप बिच्छू भी मुंह में भर ले। हर चीज उसको मुंह में लेने की आदत जो होती है।

समझाने, पुचकारने और जरूरत पड़ने पर उसे डांटा भी जाता है, और मूसल से बांधा भी जाता है। माखन चोरी और झूठ जैसी बाल लीलाएं तो कन्हैया भी करते थे, अगर हमारा कन्हैया करता है, तो क्या गलत करता है। ।

लेकिन ऐसा नहीं होता। बच्चों को सबक सीखने पाठशाला भी जाना पड़ता है, और शैतानी करने पर दंडित भी होना पड़ता है। बढ़ती उम्र, संगति और परिवेश का असर तो उस पर पड़ता ही है।

हर बच्चा हरिश्चंद्र का अवतार नहीं होता। झूठ बोलना वह हम से ही सीखता है। बच्चों से मार मारकर सच उगलवाया जाता है। ज्यादा लाड़ प्यार और अधिक सख्ती, दोनों ही इस स्थिति में काम नहीं आती। बढ़ती उम्र में भी अगर आपका बालक सुशील, सुसंस्कृत और आज्ञाकारी है तो आप एक खुशनसीब अभिभावक हैं।।

बाल मन बड़ा विचित्र होता है। बढ़ती उम्र के बच्चों की अपनी समस्या होती है, जहां एक कुशल पेरेंटिंग की जरूरत होती है। बाल मनोविज्ञान समझना इतना आसान भी नहीं। मन्नू भंडारी का आपका बंटी बाल मनोविज्ञान का एक अनूठा दस्तावेज है। माता पिता के टूटते संबंधों का असर बालक पर भी पड़ता है। बाल संवेदना आपका बंटी का मूल विषय है।

नई पौद ही तो गुलशन को गुलजार करती है। एक एक बच्चा इस देश की रीढ़ की हड्डी है। पालक, शिक्षक, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदार सभी की इसमें भागीदारी होती है। केवल सच्चाई और ईमानदारी ही बच्चों के चरित्र का निर्माण करती है। बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं, यह प्रश्न आज भी विचारणीय है।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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