श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – चेहरे
आरोप है
लम्बे समय से
मैंने कुछ नया नहीं लिखा है,
मैं इसे नकारता हूँ
आरोपों का खंडन करता हूँ,
लो अपने लेखन का भेद
आज तुम्हारे सामने
प्रकट करता हूँ …..
दरअसल
मैं चेहरों पर लिखा करता था,
चेहरे मेरे लेखन का केंद्र होते थे,
बोलते चेहरे-तौलते चेहरे,
हँसाते चेहरे-रुलाते चेहरे,
सुंदर चेहरे-विद्रूप चेहरे,
लड़ाते चेहरे-झगड़े मिटाते चेहरे,
गुलाब की पंखुड़ियों से
खिलते-मुरझाते चेहरे…..
ऐसे चेहरे-वैसे चेेहरे,
हर रंग के चेहरे,
रंग-बिरंगे चेहरे,
इस तरफ चेहरे,
उस तरफ चेहरे,
हर तरफ चेहरे,
भीतर को सच्चाई से
बाहर जताते चेहरेे…..
मैं चेहरे देखता,
क़लम खुद चल पड़ती,
कई रंग कागज़ पर बिखरते,
रचना बन पड़ती,
तुम इसे पढ़ते,
मैं तुम्हे पढ़ता,
तुम्हारे रंग के सहारे
फिर एक नयी रचना गढ़ता…..
चेहरे अब बेरंग हो गए हैं,
हँसना-हँसाना,
रोना-रुलाना,
रूठना-मनाना,
सब कुछ एकदम सधा हुआ,
मापा हुआ-तौला हुआ…..
इंचों में गिनी जाती मुस्कानें,
मिलीमीटर में आँसू के पैमाने,
भावनाओं के
सुनिश्चित गणितीय चौखट के
पहरेदार हो चले हैं,
चेहरे अब निर्विकार हो चले हैं…..
रचता तो मैं अब भी हूँ,
क़ाग़ज़ों पर रंग
तुम ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ लो,
मेरा लिखना बदस्तूर जारी है
तुम पढ़ सको तो पढ़ लो…!
© संजय भारद्वाज
(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।
इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः।
साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈