आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – मुझमें है मेरा कातिल…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 72 – मुझमें है मेरा कातिल… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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मुझमें है मेरा कातिल, मुझको पता न था
साजिश में तुम हो शामिल, मुझको पता न था
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जिसने डुबाई कश्ती, था आसरा उसी का
दुश्मन बनेगा साहिल, मुझको पता न था
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विष ब्याल है प्रदूषण, कितने करीब उनके
हैं लोग इतने गाफिल, मुझको पता न था
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हम वृक्ष पूजते हैं, वे उनको काटते हैं
हमको कहेंगे जाहिल, मुझको पता न था
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बेटे हुनर बताते हैं, कामयाबियों के
वे हो गये हैं काबिल, मुझको पता न था
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© आचार्य भगवत दुबे
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈