सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम – ग़ज़ल – मतलबी है ये जहाँ…।
रचना संसार # 21 – ग़ज़ल – मतलबी है ये जहाँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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तीरगी में प्यार का ऐसा दिया रौशन करें
हो उजाला जिसका हर सू वो वफ़ा रौशन करें
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लुत्फ़ आता ही कहाँ है ज़िन्दगी में आजकल
मौत आ जाए तो फिर जन्नत को जा रौशन करें
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मतलबी है ये जहाँ क़ीमत वफ़ा की कुछ नहीं
हुस्न से कह दो न हरगिज़ अब अदा रौशन करें
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आलम -ए- वहशत में हूँ और होश मुझको है नहीं
वो तो ज़ीनत हैं कहो वो मयकदा रौशन करे
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इंतिहा- ए- तिश्नगी कोई मिटा सकता नहीं
कह दो बीमार-ए-मुहब्बत की दवा रौशन करें
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किस क़दर है आज कल खुद पर गुमां इन्सान को।
मीर कह दूँ मैं उन्हें गर वो फ़ज़ा रौशन करें
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रोज़ ही किरदार पे उठती रही हैं उँगलियॉं
कोई उल्फ़त का नया अब सिलसिला रौशन करें
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हो गया मीना मुकम्मल ज़िन्दगी का ये सफ़र
टूटती साँसे कहें चल मक़बरा रौशन करें
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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