स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 208 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
एक हजार श्यामकर्ण अश्व
जो
उन्हें दिये थे वरुण ने ।
कालांतर में
नदी में बह गये
चार सौ अश्व
(क्या पता कैसे ?)
अब
संसार में
श्यामकर्ण अश्व
केवल छै सौ ही हैं
जो तुम्हें प्राप्त हो गये हैं ।
गालव ने पूछा-
‘तो अब
क्या है
–
शेष गुरु दक्षिणा की पूर्ति
का उपाय?’
गरुड़ ने
मुस्कान बिखेरते हुए कहा
‘प्राप्त अश्वों के साथ
माधवी को भी
समर्पित कर दो
विश्वामित्र को ।
निदान
गालव ने
वही किया
जो गरुड़ ने कहा।
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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