श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जो साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री सुरेश पटवा जी द्वारा लिखित निबंध संग्रह “मैं खोजा मैं पाइयां…” पर चर्चा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 170 ☆
☆ “मैं खोजा मैं पाइयां” (निबंध संग्रह) – लेखक … श्री सुरेश पटवा ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
पुस्तक चर्चा
पुस्तक …. मैं खोजा मैं पाइयां
निबंध संग्रह … सुरेश पटवा
प्रकाशक … आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल
पृष्ठ ..१३६, मूल्य २६० रु
चर्चाकार …विवेक रंजन श्रीवास्तव
श्री सुरेश पटवा
“आनंद राहत देता है और मजा तनाव”,
” जिनके पास आँख और कान हैं वे भी अंधे और बहरे हैं “,
“इस जगत में हमारे लिये वही सत्य सार्थक है, जिसे स्वीकार कर भोग लेने की हममें योग्यता हो “
… इसी किताब में श्री सुरेश पटवा
ऊपर उधृत वाक्यांशो जैसे दार्शनिक, शाश्वत तथ्यों से इंटरनेट पर रजनीश साहित्य, बाबा जी के यूट्यूब चैनल, विकिपीडीया आदि में प्रचुर सामग्री सुलभ है, पर आजकल अपने मस्तिष्क में रखने की प्रवृत्ति हमसे छूटती जा रही है। पटवा जी एक अध्येता हैं, उनके संदर्भ विशद हैं और वे विषयानुकूल सामग्री ढ़ूंढ़ कर अपने पाठकों को रोचक पठनीय मटेरियल देने की कला में माहिर हैं। पटवा जी न केवल बहुविध रचना कर्मी हैं, वरन वे विविध विषयों पर पुस्तक रूप में सतत प्रकाशित लेखक भी हैं। साहित्यिक आयोजनो में उनकी निरंतर भागीदारी रहती ही है। कबीर के दोहे ” जिन खोजा तिन पाइयां शीर्षक से किंडल पर ओशो की एक पूरी किताब ही सुलभ है। इसी का अवलंब लेकर इस किताब में संग्रहित नौ लेखों का संयुक्त शीर्षक “मैं खोजा मैं पाइयां” रखा गया है। शीर्षक ही किताब का गेटवे होता है, जो पाठक का प्रथम आकर्षण बनता है।
मैं खोजा मैं पाइयां में “मैं की यात्रा का पथिक”, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति और विकास, आजाद भारत में हिन्दी, “राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा “, देवनागरी उत्पत्ति और विकास, खड़ी बोली की यात्रा, हिन्दी उर्दू का बहनौता, भारतीय ज्ञान परम्परा में पावस ॠतु वर्णन, तथा ” हिन्दी साहित्य में गुलमोहर ” शीर्षकों से कुल नौ लेख संग्रहित हैं।
किताब आईसेक्ट पब्लीकेशन भोपाल से त्रुटिरहित छपी है। आईसेक्ट रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय का ही उपक्रम है। विश्वरंग के साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजनो के चलते हिन्दी जगत में दुनियां भर में पहचान बना चुके इस संस्थान से “मैं खोजा मैं पाइयां” के प्रकाशन से किताब की पहुंच व्यापक हो गई है। देवनागरी की उत्पत्ति, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति आदि लेखों में जिन विद्वानो के लेखों से सामग्री उधृत की गई है, वे संदर्भ भी दिये जाते तो प्रासंगिक उपयोगिता और भी बढ़ जाती। हिन्दी मास के अवसर पर प्रकाशित होकर आई इस पुस्तक से हिन्दी और देवनागरी पर प्रामाणिक जानकारियां मिलती हैं, जिसका उल्लेख साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डा विकास दवे जी ने पुस्तक की प्रस्तावना में भी किया है। शाश्वत सत्य यही है कि बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता, खुद खोजना होता है, ज्ञान का खजाना तो बिखरा हुआ है। जो भी पूरे मन प्राण से जो कुछ खोजता है उसे वह मिलता ही है। सुरेश पटवा जी ने इस किताब के जरिये हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, देवनागरी उत्पत्ति, आदि शोध निबंध, साहित्य में गुलमोहर, ज्ञान परम्परा में पावस ॠतु वर्णन जैसे ललित निबंध तथा कई वैचारिक निबंध प्रस्तुत कर स्वयं की निबंध लेखन की दक्षता प्रमाणित कर दिखाई है। इस संदर्भ पुस्तक के प्रकाशन पर मैं सुरेश पटवा जी को हृदयतल से बधाई देता हूं और “मैं खोजा मैं पाइयां” का हिन्दी जगत में स्वागत करता हूं।
चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈